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मूलाचार
अर्थ-देवगतिमें सबसे थोडे विमानवासी सौधर्मादिक देव और सब देवी हैं उनसे असंख्यातगुणे दस प्रकारके भवनवासी देव हैं उनसे असंख्यात गुणे व्यंतरदेव हैं उनसे असंख्यात गुणे सब ज्योतिषी देव हैं ॥ १२१६-१२१७ ॥ अणुदिसणुत्तरदेवा सम्मादिट्टीय होंति बोधव्वा । तत्तो खलु हेट्ठिमया सम्मामिस्सा य तह सेसा ॥
अनुदिशानुत्तरदेवाः सम्यग्दृष्टयो भवंति बोद्धव्याः। ततःखलु अधस्तनाः सम्यग्मिश्राश्च तथा शेषाः ॥१२१८॥
अर्थ-नव अनुदिश पांच अनुत्तरविमानोंके देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं और उनसे नीचेके देव मिथ्यादृष्टि से लेकर सम्यग्दृष्टिगुणतक होते हैं तथा शेष नारक तिर्यंच मनुष्य मिश्रगुणतक होते हैं ॥ १२१८॥ ___ अब बंधके कारण आदिको कहते हैं;मिच्छादसणअविरदिकसायजोगा हवंति बंधस्स । आऊसज्झवसाणं हेदव्वो ते दु णायव्वा ॥ १२१९ ॥ मिथ्यादर्शनाविरतिकषाययोगा भवंति बंधस्य । आयुष अध्यवसानं हेतवस्ते तु ज्ञातव्याः ॥ १२१९ ॥
अर्थ-मिथ्यादर्शन अविरति कषाय योग और आयुका परिणाम-ये कर्मबंधके कारण हैं ऐसा जानना चाहिये ॥ १२१९ ॥ जीवो कसायजुत्तो जोगादो कम्मणे दुजे जोग्गा। गेण्हइ पोग्गलदव्वे बंधो सो होदि णायव्वो ॥१२२०।। जीवः कषाययुक्तः योगात् कर्मणस्तु यानि योग्यानि । गृह्णाति पुद्गलद्रव्याणि बंधः स भवति ज्ञातव्यः ॥१२२०॥