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मूलाचारसिद्धेहिं अणंतगुणा सवेणवि तीदकालेण ॥ १२०४॥
एकनिगोदशरीरे जीवा द्रव्यप्रमाणतो दृष्टाः । सिद्धैरनंतगुणाः सर्वेणाप्यतीतकालेन ॥ १२०४॥
अर्थ-एक निगोद शरीर (साधारण वनस्पती) में जीव अपने द्रव्यप्रमाणसे सिद्धोंसे अनंतगुणे और सब अतीतकालसे अनंतगुणे हैं ऐसा भगवानने देखा है ॥ १२०४ ॥ एइंदिया अणंता वणप्फदीकायिगा णिगोदेसु । पुढवी आऊ तेऊ वाऊ लोया असंखिज्जा ॥ १२०५॥
एकेंद्रिया अनंता वनस्पतिकायिका निगोदेषु । पृथ्वी आपः तेजः वायवः लोका असंख्याताः ॥१२०५॥
अर्थ-निगोदोंमें वनस्पतिकायिक एकेंद्रिय जीव अनंतानंत हैं और पृथिवीकाय जलकाय तेजःकाय वायुकायिक जीव असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ १२०५॥ तसकाइया असंखा सेढीओ पदरछेदणिप्पण्णा । सेसासु मग्गणासुवि णेदव्वा जीव समासेज ॥१२०६ त्रसकायिका असंख्याताः श्रेण्यः प्रतरछेदनिष्पन्नाः। शेषासु मार्गणास्वपि नेतव्या जीवाः समाश्रित्य ॥१२०६॥ अर्थ-दो इंद्रिय आदि त्रस जीव लोक प्रतरके भाग करनेसे उत्पन्न असंख्यात श्रेणी मात्र हैं । इस प्रकार शेष मार्गणाओंमें भी जीवोंको आश्रयकर संख्या जाननी ॥ १२०६ ॥
अब कुलोंका कथन करना चाहिये था परंतु पंचाचाराधिकारमें २२१ वें गाथासे लेकर २२५ वें गाथातक व्याख्यान