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पर्याप्ति-अधिकार १२। चोंमें पांच गुणस्थान हैं और मनुष्यगतिमें चौदह गुणस्थान पाये जाते हैं ॥ १२०० ॥ एइंदियाय पंचेंदिया य उड्डमहतिरियलोएसु। सयलविगलिंदिया पुण जीवा तिरियंमि लोयंमि ॥ एकेंद्रियाः पंचेंद्रियाश्च ऊर्ध्वमधस्तिर्यग्लोकेषु । सकलविकलेंद्रियाः पुनः जीवाः तिर्यग्लोके ॥ १२०१॥
अर्थ-एकेंद्रिय और पंचेंद्रिय जीव ऊर्ध्व अधः तिर्यक् इन तीनों लोकोंमें हैं और सब दोइंद्री आदि असंज्ञीतक विकलेंद्री जीव तिर्यग्लोकमें हैं ॥ १२०१ ॥ एइंदियाय जीवा पंचविधा वादरा य सुहमा य । देसेहिं वादरा खलु सुहुमहिं णिरंतरो लोओ॥१२०२॥
एकेंद्रिया जीवाः पंचविधा बादराश्च सूक्ष्माश्च ।। देशैः वादराः खलु सूक्ष्मैः निरंतरो लोकः ॥ १२०२ ॥
अर्थ-एकेंद्रिय जीव पृथिवीकायादि पांच प्रकारके हैं और वे प्रत्येक बादर सूक्ष्म हैं वादर जीव लोकके एक देशमें हैं तथा सूक्ष्म जीवोंसे सब लोक ठसाठस भरा हुआ है ॥ १२०२ ॥ अस्थि अणंता जीवा जेहि ण पत्तो तसाण परिणामो। भावकलंकसुपउरा णिगोदवासं अमुंचंता ॥ १२०३ ॥
संति अनंता जीवा यैः न प्राप्तः त्रसानां परिणामः । भावकलंकसुप्रचुरा निगोदवासं अमुंचंतः ॥ १२०३ ॥
अर्थ-वे अनंत जीव हैं जिनोंने कभी सपर्याय नहीं पाया मिथ्यत्वादिसे कलुषितहुए वे निगोदवासको नहीं छोड़ते ॥ एगणिगोदसरीरे जीवा दवप्पमाणदो दिहा।