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मूलाचारआणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दस पाणा ॥ पंचैव इंद्रियाणि प्राणा मनोवचनकायास्तु त्रयो बलप्राणाः। आनप्राणः प्राणः आयुःप्राणेन भवंति दश प्राणाः ११९१
अर्थ-पांच इंद्रिय प्राण, मन वचनकायबलरूप तीन बल प्राण, श्वासोच्छास प्राण और आयुःप्राण-इसतरह दस प्राण हैं ॥ ११९१ ॥ इंदिय बल उस्सासा आऊ चदु छक्क सत्त अटेव । एगिदिय विगलिंदिय असण्णि सण्णीण णव दस
. पाणा ॥ ११९२ ॥ इंद्रियं बलं उच्छ्वास आयुः चत्वारः षट् सप्त अष्टैव । एकेंद्रियस्य विकलेंद्रियस्य असंज्ञिनः संज्ञिनो नव दश प्राणाः ।।
अर्थ-स्पर्शनइंद्रिय कायबल उच्छास आयु ये चार प्राण, छह प्राण, सात प्राण आठ प्राण क्रमसे एकेंद्रिय दोइंद्री तेइंद्री चौइंद्रीके होते हैं और असंज्ञी तथा संज्ञी पंचेंद्रियके नौ तथा दस प्राण होते हैं ॥ ११९२ ॥ सुहमा वादरकाया ते खलु पजत्तया अपजत्ता । एइंदिया दु जीवा जिणेहि कहिया चदुवियप्पा॥१९९३ सूक्ष्मा बादरकायास्ते खलु पर्याप्तका अपर्याप्तकाः । एकेंद्रियास्तु जीवा जिनैः कथिताः चतुर्विकल्पाः॥११९३
अर्थ-जिन भगवानने एकेंद्रियजीव सूक्ष्म बादर पर्याप्त अपर्याप्त भेदोंसे चार तरहके कहे हैं ॥ ११९३ ॥ पजत्तापज्जत्ता वि होंति विगलिंदिया दु छन्भेया। पजत्तापजत्ता सण्णि असण्णीय सेसा दु ॥ ११९४ ॥