Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 451
________________ ४१४ मूलाचार मनुष्यगतिमें ही नियमसे होता है ऐसी जिनदेवने आज्ञा की है ॥ ११८४ ॥ सम्मइंसणणाणेहिं भाविदा सयलसंजमगुणेहिं । णिहवियसव्वकम्मा णिग्गंथा णिव्वुदिं जंति ॥११८५ सम्यग्दर्शनज्ञानाभ्यां भाविताः सकलसंयमगुणैः । निष्ठापितसर्वकर्माणो निग्रंथा नितिं यांति ॥ ११८५ ॥ अर्थ-सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञानकर युक्त, सकलसंयमगुणोंकर सहित परमशुक्लध्यानसे जिनोंने सब कर्मोंका नाश कर दिया है ऐसे निग्रंथ मुनि मोक्षको जाते हैं ॥ ११८५ ॥ ते अजरमरुजममरमसरीरमखूयमणुवर्म सोक्खं । अव्वाबाधमणंतं अणागदं कालमत्थंति ॥ ११८६॥ ते अजरमरुजममरमशरीरमक्षयमनुपमं सौख्यं । अन्यावाधमनंतं अनागतं कालं अधितिष्ठति ॥ ११८६ ॥ अर्थ-मोक्षको प्राप्त हुए वे निथ जरारहित रोगरहित अमर शरीररहित अविनाशी अनुपम अव्यावाघ सुखसहित हुए अनंत अनागतकालतक अर्थात् सदा निवास मोक्षमें करते हैं ॥११८६॥ __ अब स्थानसूत्रको कहते हैं;एइंदियादि पाणा चोद्दस दु हवंति जीवठाणाणि । गुणठाणाणि य चोद्दस मग्गणठाणाणिवि तहेव ॥ एकेंद्रियादयः प्राणाः चतुर्दश तु भवंति जीवस्थानानि । गुणस्थानानि च चतुर्दश मार्गणास्थानान्यपि तथैव ११८७ अर्थ-प्रथम एकेंद्रियादिकसूत्र दूसरा प्राणसूत्र तीसरा जीव

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