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पर्याप्ति-अधिकार १२। ४१३ चयकर कदाचित् मोक्ष जाते हैं तीर्थंकर बलदेव चक्रवर्तीपनेको भी कदाचित् पाते हैं अथवा नहीं भी पाते ॥ ११८१ ॥: सव्वट्ठादो य चुदा भन्जा तित्थयरचक्कवट्टित्ते । रामत्तणेण भज्जा णियमा पुण णिव्वुदि जंति.॥११८२ सर्वार्थाच च्युता भाज्याः तीर्थकरचक्रवर्तित्वेन । रामत्वेन भाज्या नियमात् पुनः निर्वृतिं यांति ॥११८२॥
अर्थ-सर्वार्थसिद्धि विमानसे चये देव तीर्थकर चक्रवर्ती बलभद्र पदवीको पाते भी हैं अथवा नहीं भी पाते परंतु मोक्षको नियमसे जाते हैं ॥ ११८२ ॥ सको सहग्गमहिसी सलोगपाला य दक्खिणिंदा य । लोगंतिगा य णियमा चुदा दु खलु णिव्वुदि जति ॥ शक्रः सहारमहिषी सलोकपालश्च दक्षिणेंद्राश्च । लोकांतिकाश्च नियमात् च्युतास्तु खलु निवृति यांति॥११८३॥ . अर्थ-सौधर्म स्वर्गका इंद्र अपनी इंद्राणी सहित लोकपालसहित और सनत्कुमार आदि दक्षिणदिशाके इंद्र तथा लौकांतिकदेव-ये सब वर्गसे चयकर मनुष्यभवसे नियमकर मोक्षको जाते हैं ॥ ११८३ ॥ एवं तु सारसमए भणिदा दु गदीगदी मए किंचि । णियमादु मणुसगदिए णिव्वुदिगमणं अणुण्णादं ॥
एवं तु सारसमये भणिते तु गत्यागती मया किंचित् । नियमात् मनुष्यगत्यां नितिगमनं अनुज्ञातव्यं ॥११८४॥ _ अर्थ-इसप्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति नामके सिद्धांतग्रंथमेंसे लेकर मैंने कुछ गति आगतिका स्वरूप कहा । और मोक्षगमन