Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 445
________________ ४०८ मूलाचार पत्तेयदेहा वणप्फइ वादरपज्जत्त पुढवि आऊ य । माणुसतिरिक्खदेवहिं चेवाइंति खलु एदे ॥ ११६६ ॥ प्रत्येकदेहा वनस्पतयो वादराः पर्याप्ताः पृथिवी आपश्च । मानुषतियेग्देवेभ्यः एव आयांति खलु एते ॥ ११६६ ॥ अर्थ-नारियल आदि प्रत्येक वनस्पति वादर पर्याप्त पृथिवीकाय जलकाय वादर पर्याप्त इनमें आर्तध्यानी मनुष्य तिर्यच देव अकार उपजते हैं ॥ ११६६ ॥ अविरुद्धं संकमणं असण्णिपज्जत्तयाण तिरियाणं । माणुसतिरिक्खसुरणारएसुण दुसव्वभावेसु॥११६७ अविरुद्धं संक्रमणं असंज्ञिपर्याप्तकानां तिरश्वां । मानुषतिर्यकसुरनारकेषु न तु सर्वभावेषु ॥ ११६७ ॥ अर्थ-असंज्ञी पर्याप्त तिर्यंचोंका गमन मनुष्य तिर्यंच देव नारक इन चारों गतियोंमें है विरोध नहीं है । परंतु सब पर्यायोंमें नहीं है ॥ ११६७ ॥ संखादीदाऊ खलु माणुसतिरिया दु मणुयतिरियेहि। संखिजआउगेहिं दुणियमा सण्णीय आयंति॥११६८ संख्यातीतायुषः खलु मानुषतिर्यचस्तु मनुष्यतियग्भ्यः । संख्यातायुष्केभ्यस्तु नियमात् संज्ञिभ्यः आयाति ११६८ अर्थ-असंख्यात वर्षकी आयुवाले भोगभूमिया मनुष्य तिर्यंच हैं वे संख्यातवर्षकी आयुवाले संज्ञी मनुष्य तिर्यचभवोंसे ही आते हैं ॥ ११६८ ॥ संखादीदाऊणं संकमणं णियमदो दु देवेसु। पयडीए तणुकसाया सव्वसिं तेण बोधव्वा ॥ ११६९

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