Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala
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पर्याप्ति-अधिकार १२ । ३७९ द्वे चैव योजनशते सप्तविंशतिश्च भवंति बोद्धव्यानि॥१०७२ त्रीण्येव गव्यूतीनि अष्टाविंशतिश्च धनुःशतं भणितं । त्रयोदश अंगुलानि अर्धांगुलमेव सविशेष ॥ १०७३ ॥
अर्थ-लाख योजन विस्तारवाले जंबूद्वीपकी परिधि (गोलाई) तीन लाख सोलह हजार दोसौ सत्ताईस योजन तीन कोस एकसौ अट्ठाईस धनुष साढे तेरह अंगुल कुछ अधिक ( एक जौ प्रमाण ) है ॥ १०७२-१०७३ ॥ जंबूदीवो धादइखंडो पुक्खरवरो य तह दीवो। वारुणिवर खीरवरो य घिदवरो खोदवरदीवो॥१०७४ णंदीसरो य अरुणो अरुणभासो य कुंडलवरो य । संखवररुजगभुजगवरकुसवरकुंचवरदीवो ॥१०७५॥
जंबूद्वीपो धातकीखंडः पुष्करवरश्च तथा द्वीपः। वारुणिवरः क्षीरवरश्च घृतवरः क्षौद्रवरद्वीपः ॥१०७४ ॥ नंदीश्वरश्व अरुणः अरुणाभासश्च कुंडलवरश्च । शंखवररुचकभुजगवरकुशवरक्रौंचवरद्वीपः ॥ १०७५ ॥
अर्थ-पहला जंबूद्वीप धातकीखंड पुष्करवरद्वीप वारुणीवर क्षीरवर घृतवर क्षौद्रवर नंदीश्वर अरुण अरुणाभास कुंडलवर शंखवर रुचकद्वीप भुजगवर कुशवर कौंचवर द्वीप सोलहवां है ।। १०७४-१०७५॥ एवं दीवसमुद्दा दुगुणदुगुणवित्थडा असंखेजा। एदे दु तिरियलोए सयंभुरमणोदही जाव ॥ १०७६ ॥
एवं द्वीपसमुद्रा द्विगुणद्विगुणविस्तृता असंख्याताः । एते तु तिर्यग्लोके स्वयंभूरमणोदधेः यावत् ॥ १०७६ ॥
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