Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 430
________________ पर्याप्ति - अधिकार १२ । ३९३ किस्साठी सक्कादीणं जहण्णा सा ॥ १११८ ॥ पल्याष्टभागः पल्यं च साधिकं ज्योतिषां जघन्यमितरत् । अध उत्कृष्टस्थितिः शक्रादीनां जघन्या सा ॥। १११८ ॥ अर्थ — चंद्रमा आदि ज्योतिषी देवोंकी जघन्य आयु पल्यके आठवें भाग है और उत्कृष्ट आयु लाखवर्ष अधिक एकपल्य है । अधः स्थित ज्योतिषी आदिकी उत्कृष्ट स्थिति है वह सौधर्म आदि देवोंकी जघन्य आयु जानना ॥ १११८ ॥ बे सत्त दसय चोदस सोलस अट्ठार वीस बावीसा । एयाधिया य एतो सक्कादिसु सागरुवमाणं ॥ १११९ ॥ द्वे सप्त दश चतुर्दश षोडश अष्टादश विंशतिः द्वाविंशतिः । एकाधिका च इतः शक्रादिषु सागरोपमानं ॥। १११९ ॥ अर्थ – सौधर्म युगल आदि खर्गों में क्रमसे उत्कृष्ट आयु दो सागर सात दस चौदह सोलह अठारह वीस वाईस सागर इससे आगे एक एक सागर अधिक होती हुई अंतके सर्वार्थ सिद्धि विमानमें तेतीस सागर है ॥ १११९ ॥ पंचादी वेहिं जुदा सत्तावीसाय पल्ल देवीणं । तत्तो सत्तरिया जावदु अरणप्पयं कप्पं ॥ ११२० ॥ पंचादिः द्वाभ्यां युताः सप्तविंशतिः पल्यानि देवीनां । ततः सप्तोत्तराणि यावत् आरणाच्युतं कल्पः ॥ ११२० ॥ अर्थ — सौधर्म आदिकी देवियोंकी उत्कृष्ट आयु पांचको आदि लेकर दो दो मिलाते हुए सहस्रारस्वर्ग पर्यंत सत्ताईस पत्यकी है उससे आगे सात सात मिलानेसे अच्युतखर्गमें पचपन पत्यकी है ॥ ११२० ॥

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