Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 440
________________ पर्याप्ति - अधिकार १२ । ४०३ देव छट्ठी पृथिवीतक, नौमेवेयक सातवें नरकतक, देखते हैं । नौ अनुदिश पाच अनुत्तर विमानोंके देव लोकके अंततक देखते जानते हैं ॥ ११४८ - ११४९ ॥ पणुवीस जोयणाणं ओही वितरकुमारवग्गाणं । संजोयणोही जोइसियाणं जहण्णं तु ॥ ११५० ॥ पंचविंशतिः योजनानां अवधिः व्यंतरकुमारवर्गाणां । संख्यातयोजनान्यवधिः ज्योतिष्काणां जघन्यं तु १९५० अर्थ — व्यंतरोंके भवनकुमारोंमें असुरके सिवाय नौ कुमारोंके पच्चीसयोजन जघन्य अवधि है और ज्योतिषियोंके संख्यातयोजन जघन्य अवधि है इतनी दूरमें स्थित वस्तुको जानसकते हैं ११५० असुराणमसंखेज्जा कोडी जोइसिय सेसाणं । संखादीदा य खलु उक्कस्सोहीयविसओ दु ॥११५१ ॥ असुराणामसंख्याताः कोट्यो ज्योतिष्काणां शेषाणां । संख्यातीताश्च खलु उत्कृष्टः अवधिविषयस्तु ॥ ११५१ ॥ अर्थ — असुरोंके असंख्यात कोडि योजन जघन्य अवधि है । चंद्रमा आदि ज्योतिषियोंके भवनवासी व्यंतरोंके निकृष्टकल्पचासियोंके असंख्यात कोडाकोडी योजन उत्कृष्ट अवधि है ॥११५१ रयणप्पहाए जोयणमेयं ओहिविसओ मुणेयव्वो । पुढवीदो पुढवीदो गाऊ अद्धद्ध परिहाणी ॥ ११५२ ॥ रत्नप्रभायां योजनमेकं अवधिविषयो ज्ञातव्यः । पृथिवीतः पृथिवीतो गव्यूतस्यार्घार्धं परिहानिः || १९५२ ॥ अर्थ - रत्नप्रभा पहली नरकपृथिवीमें एक योजन अवधिका

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