Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 441
________________ ४०४ मूलाचार विषय है आगेके नरकोंमें आधा आधा कोस कम करना जो हो वही अवधिका विषय है । सातवींमें एककोस रहजाता है॥११५२ __आगे गमन आगमनको कहते हैं;पढमं पुढविमसण्णी पढमं बिदियं च सरिसवा जति। पक्खी जावदु तदियं जाव चउत्थी दु उरसप्पा ॥ प्रथमां पृथिवीमसंज्ञिनः प्रथमां द्वितीयां च सरीसृपा यांति। पक्षिणो यावत् तृतीयां यावच्चतुर्थी तु उरःसर्पाः॥११५३॥ अर्थ- असंज्ञी जीव पहली पृथिवीमें जाते हैं गोह करकेंटा आदि जीव पहली दूसरी पृथिवीतक जाते हैं । भैरुंड आदि पक्षी तीसरीतक, अजगर आदि चौथीतक मरण करके जाते हैं ॥ ११५३ ॥ आ पंचमीति सीहा इत्थीओ जति छट्टिपुढवित्ति । गच्छंति माघवीत्ति य मच्छा मणुया य जे पावा ॥ आपंचमीमिति सिंहाः स्त्रियो यांति षष्ठीपृथिवीमिति । गच्छंति माघवीमिति च मत्स्या मनुजाश्च ये पापाः ॥११५४॥ अर्थ-सिंह व्याघ्रादिक पहली से लेकर पांचवींतक जाते हैं। स्त्रियां छठी पृथिवीतक पापी मच्छ और पापी मनुष्य सातवें नरकतक जाते हैं ॥ ११५४ ॥ उव्यद्दिदाय संता रइया तमतमादु पुढवीदो। ण लहंति माणुसत्तं तिरिक्खजोणीमुवणयंति॥११५५ उद्वर्तिताः संतो नारकास्तमतमातः पृथिवीतः। न लभंते मनुष्यत्वं तियेग्योनिमुपनयंति ॥ ११५५ ॥

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