Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 431
________________ ३९४ मूलाचारपणयं दस सत्तधियं पणवीसं तीसमेव पंचधियं । चत्तालं पणदालं पण्णाओ पण्णपण्णाओ॥ ११२१ ॥ पंच दश सप्ताधिकानि पंचविंशतिः त्रिंशदेव पंचाधिकाः । चत्वारिंशत् पंचचत्वारिंशत् पंचाशत् पंचपंचाशत्॥११२१॥ अर्थ-किसी आचार्यका ऐसा कहना है कि देवियोंकी आयु क्रमसे पांच सत्रह पच्चीस पैंतीस चालीस पैंतालीस पचास पचपन पल्यकी युगलोंमें है ॥ ११२१ ॥ चंदस्स सदसहस्सं सहस्स रविणो सदं च सुक्कस्स । वासाधिए हि पल्लं लेहिटुं वरिसणामस्स ॥११२२॥ चंद्रस्य शतसहस्रं सहस्रं रवेः शतं च शुक्रस्य । वर्षाधिकं हि पल्यं लधिष्ठं वर्षनाम्नः ॥ ११२२ ॥ अर्थ-चंद्रमाकी उत्कृष्ट आयु लाखवर्ष अधिक एक पल्यकी है, सूर्यकी हजार वर्ष अधिक पल्यकी है, शुक्रकी सौ वर्ष अधिक पल्यकी है, बृहस्पतिकी सौ बरस कम एक पल्यकी है ॥ ११२२॥ सेसाणं तु गहाणं पल्लद्धं आउगं मुणेयव्वं । ताराणं च जहण्णं पादद्धं पादमुक्कस्सं ॥ ११२३ ॥ शेषाणां तु ग्रहाणां पल्या आयुः मंतव्यं । ताराणां च जघन्यं पादा) पादमुत्कृष्टं ॥ ११२३॥ अर्थ-शेष ग्रहोंकी उत्कृष्ट आयु आधा पल्य जानना । ध्रुव आदि ताराओंकी जघन्य आयु पल्यका आठवां भाग है उत्कृष्ट आयु पल्यका चौथा भाग है ॥ ११२३ ॥ सव्वेसिं अमणाणं भिण्णमुहुत्तं हवे जहण्णेण। सोवकमाउगाणं सण्णीणं चावि एमेव ॥ ११२४ ॥

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