Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 435
________________ ३९८ मूलाचार देवियां दोनों ही आरण अच्युत खर्ग पर्यंत हैं लांतव वर्गसे ऊपर नित्य मैथुन करनेवाले संम्मोहदेव और बाजा बजानेवाले किल्विषिक ये नीच देव नहीं हैं ॥ ११३३ ॥ - आगे लेश्याओंको दिखलाते हैं;काऊ काऊ तह काउणील णीला य णीलकिण्हाय । किण्हा य परमकिण्हा लेस्सा रदणादिपुढवीसु॥११३४ कापोती कापोती तथा कापोती नीलनीला च नीलकृष्णा। कृष्णा च परमकृष्णा लेश्या रत्नादिपृथिवीषु ॥ ११३४ ॥ अर्थ-रत्नप्रभा आदि नरककी पृथिवियोंमें जघन्य कापोती मध्यमकापोती उत्कृष्ट कापोती तथा जघन्य नीललेश्या मध्यमनीललेश्या उत्कृष्टनीललेश्या तथा जघन्यकृष्णलेश्या मध्यमकृष्णलेश्या और उत्कृष्टकृष्णलेश्या है ॥ ११३४ ॥ तेऊ तेऊ तह तेउ पम्म पम्मा य पम्मसुक्का य । सुक्का य परमसुक्का लेस्साभेदो मुणेयव्वो ॥ ११३५ ॥ तिण्हं दोण्हं दोण्हं छण्हं दोण्हं च तेरसण्हं च । एतो य चोदसण्हं लेस्सा भवणादिदेवाणं ॥११३६ ॥ तेजस्तेजः तथा तेजः पद्मा पद्मा च पद्मशुक्ला च । शुक्ला च परमशुक्ला लेश्याभेदो ज्ञातव्यः ॥ ११३५ ॥ त्रयाणां द्वयोः द्वयोः षण्णां द्वयोश्च त्रयोदशानां च । इतश्च चतुर्दशानां लेश्या भवनादिदेवानां ॥ ११३६ ॥ अर्थ-भवनवासी आदि देवोंके क्रमसे जघन्य तेजोलेश्या भवनत्रिकमें है, दो वर्गों में मध्यम तेजोलेश्या है, दोमें उत्कृष्ट तेजोलेश्या है जघन्य पद्मलेश्या है, छहमें मध्यम पद्मलेश्या है,

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