Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

Previous | Next

Page 432
________________ पर्याप्ति-अधिकार १२। सर्वेषां अमनस्कानां भिन्नमहतं भवेत जघन्येन। सोपक्रमायुष्काणां संज्ञिनां चापि एवमेव ॥ ११२४ ॥ अर्थ-सब असंज्ञियोंकी जघन्य आयु अंतर्मुहूर्त है और विष । आदिसे घात होनेवाली आयुवाले संज्ञी जीवोंकी भी जघन्य अंतमुहूर्त आयु है ॥ ११२४ ॥ अब संख्यामानको कहते हैं;संखेन्जमसंखेजं बिदियं तदियमणंतयं वियाणाहि । तत्थ य पढमं तिविहं णवहा णवहा हवे दोण्णि११२५ संख्यातमसंख्यातं द्वितीयं तृतीयं अनंतं विजानीहि । तत्र च प्रथमं त्रिविधं नवधा नवधा भवेतां द्वे ॥११२५॥ अर्थ-संख्यात असंख्यात अनंत ये तीन संख्यामानके भेद जानना । उनमेंसे पहला संख्यात जघन्य मध्यम उत्कृष्टके भेदसे तीन तरहका है और शेष असंख्यात अनंत ये दोनों नौ नौ प्रकारके हैं ॥ इनदोनोंमें युक्त परीत दोवार ये भेद होनेसे नौ नौ भेद हैं ॥ ११२५ ॥ पल्लो सायर सूई पदरो य घणंगुलो य जगसेढी । लोगपदरो य लोगो अट्ठ दु माणा मुणेयव्वा ॥११२६॥ पल्यं सागरः सूची प्रतरश्च घनांगुलं च जगच्छ्रेणी । लोकप्रतरश्च लोकः अष्टौ तु मानानि ज्ञातव्यानि॥११२६॥ . अर्थ-पत्य सागरोपम सूच्यंगुल प्रतरांगुल धनांगुल जगच्छेणी लोकप्रतर लोक-ये आठ उपमामान हैं ऐसा जानना ॥ ११२६ ॥ . अब योगोंको खामीसहित कहते हैं;बेइंदियादि भासा भासा य मणो य सण्णिकायाणं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470