Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 415
________________ ३७८ मूलाचार भागमसंख्येयं यो देहो अंगुलस्य स देहः। . एकेंद्रियादिपंचेंद्रियांतं देहो जघन्येन ॥ १०६९ ॥ अर्थ-घनांगुल (द्रव्यांगुल ) के असंख्यातवें भाग प्रमाण एकेंद्रियसे लेकर पंचेंद्री तिर्यंचोंतक जघन्य देह होता है।।१०६९ साहियसहस्समेयं तु जोयणाणं हवेज उक्कस्सं । एइंदियस्स देहं तं पुण पउमत्ति णादव्वं ॥ १०७० ॥ साधिकसहस्रमेकं तु योजनानां भवेत् उत्कृष्टं । एकेंद्रियस्य देहः स पुनः पझे इति ज्ञातव्यं ॥ १०७० ॥ अर्थ-एकेंद्रियका उत्कृष्ट शरीर दो कोस अधिक एक हजार योजन है वह कमल नाम वनस्पतिकायका देह जानना ।।१०७०॥ संखो पुण बारस जोयणाणि गोभी भवंति कोसं तु। भमरोजोयणमेत्तं मच्छो पुण जोयणसहस्सं॥१०७१॥ शंखः पुनः द्वादशयोजनानि गोभी भवेत् त्रिक्रोशं तु । भ्रमरो योजनमात्रः मत्स्यः पुनः योजनसहस्रं ॥१०७१॥ अर्थ-दो इंद्रिय शंख बारहयोजनका होता है ते इंद्रिय गोभी ( खर्जूरक ) तीन कोशके विस्तारवाला है। चौइंद्रियमेंसे भंवरा एक योजनका होता है और पंचेंद्रिय तिर्यंचमेंसे मत्स्य हजार योजन विस्तारवाला होता है ॥ १०७१ ॥ जंबूदीवपरिहिओ तिण्णिव लक्खं च सोलहसहस्सं । बे चेव जोयणसयासत्तावीसा य होंति बोधव्वा१०७२ तिण्णेव गाउआइं अट्ठावीसं च धणुसयं भणियं । तेरसय अंगुलाई अद्धंगुलमेव सविसेसं ॥ १०७३ ॥ जंबूद्वीपपरिधिः त्रीण्येव लक्षाणि च षोडशसहस्राणि ।

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