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मूलाचार
व्यंतरदेवोंका शरीर दस धनुष ऊंचा है और ज्योतिषी देवोंका सात धनुष ऊंचा है ॥ १०६२ ॥ छद्धणुसहस्सुस्सेधं चदु दुगमिच्छंति भोगभूमीसु । पणवीसं पंचसदा वोधव्वा कम्मभूमीसु॥१०६३ ॥
षट् धनुःसहस्रोत्सेधं चत्वारि द्वे इच्छंति भोगभूमिषु । पंचविंशतिः पंचशतानि बोद्धव्यानि कर्मभूमिषु ॥१०६३॥
अर्थ-भोगभूमियोंमें उत्तम मध्यम जघन्य भोगभूमिके मनुष्योंकी उंचाई क्रमसे छह हजार धनुष चार हजार धनुष दो हजार धनुष प्रमाण है। और कर्मभूमिके मनुष्योंकी उत्कृष्ट उंचाई पांचसौ पच्चीस धनुषप्रमाण है ॥ १०६३ ॥ सोहम्मीसाणेसु य देवा खलु होंति सत्तरयणीओ। छच्चेव य रयणीओ सणकुमारे हि माहिंदे ॥१०६४ ॥
सौधर्मेशानयोश्च देवाः खलु भवंति सप्त रत्नयः । षट् चैव च रत्नयः सनत्कुमारे हि माहिंद्रे ॥ १०६४ ॥
अर्थ-सौधर्म और ऐशान वर्गके देव सात हाथ ऊंचे होते हैं । सनत्कुमार और माहेंद्र वर्गके छह हाथ ऊंचे हैं ॥१०६४ ॥ बंभे य लंतवेवि य कप्पे खलु होंति पंच रयणीओ। चत्तारि य रयणीओ सुक्कसहस्सारकप्पेसु॥१०६५॥ ब्रह्मे च लांतवेपि च कल्पे खलु भवंति पंचरत्नयः। चत्वारश्च रत्नयः शुक्रसहस्रारकल्पेषु ॥१०६५॥
अर्थ-ब्रह्म युगल और लांतव युगलमें पांच हाथ ऊंचे होते हैं और शुक्र युगल तथा शतार सहस्रार स्वर्गमें चार हाथ ऊंचे होते हैं ॥ १०६५ ॥