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पर्याप्ति-अधिकार १२ । स्थलगर्भजपर्याप्ताः त्रिगव्यूतानि उत्कृष्टमायामः ॥१०८६॥
अर्थ-जलचर गर्भजपर्याप्त जीवोंका उत्कृष्ट देहप्रमाण पांचसौ योजन है और स्थलचर गर्भज पर्याप्त जीवोंका उत्कृष्ट आयाम तीनकोशका है ॥ १०८६ ॥ अंगुलअसंखभागं बादरसुहमा य सेसया काया। उकस्सेण दुणियमा मणुगा य तिगाउ उव्विद्धा१०८७
अंगुलासंख्यभागं बादरसूक्ष्माश्च शेषाः कायाः। उत्कृष्टेन तु नियमात् मनुष्याश्च त्रिगव्यूतानि उद्बद्धाः१०८७
अर्थ-द्रव्यांगुलका असंख्यातवां भाग प्रमाण वादर तथा सूक्ष्म बाकीके पृथिवीकाय अप्काय तेजःकाय वायुकायका उत्कृष्ट शरीर प्रमाण नियमसे जानना । और मनुष्योंका प्रमाण तीन कोसका जानना ॥ १०८७ ॥ सुहमणिगोदअपजत्तस्स जादस्स तदियसमयह्मि । हवदि दु सव्वजहण्णं सव्वुक्कस्सं जलचराणं॥१०८८॥ सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तस्य जातस्य तृतीयसमये । भवति तु सर्वजघन्यं सर्वोत्कृष्टं जलचराणां ॥१०८८ ॥
अर्थ-सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्त उत्पन्न हुए जीवके तीसरे समयमें नियमसे सबसे जघन्य शरीर होता है और जलचर मत्स्य जीवका सबसे उत्कृष्ट शरीर होता है ॥ १०८८ ॥ __ अब देह के आकार सूत्रको कहते हैं;मसूरिय कुसग्गविंदू सूइकलावा पडाय संठाणं । कायाणं संठाणं हरिदतसा णेगसंठाणा ॥ १०८९ ॥ मसूरिका कुशाग्रविंदुः सूचीकलापाः पताका संस्थानं ।