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समयसाराधिकार १०।
३४५ बहवो तिरत्तवुत्था सिद्धाधीरा विरग्गपरिसमणा९६५
मा भवतु वर्षगणना न तत्र वर्षाणि परिगण्यते । बहवः त्रिरात्रोत्थाः सिद्धा धीरा वैराग्यपराः श्रमणाः ९६५
अर्थ-वर्षों की गणना मत हो क्योंकि मुक्तिके कारणमें वर्ष नहीं गिने जाते । बहुतसे मुनि तीनराततक चारित्र धारणकर धीर और बैरागी हुए कर्मरहित सिद्ध होगये ॥ ९६५ ॥ ___ आगे बंध और उसका कारण कहते हैंजोगणिमित्तं गहणं जोगो मणवयणकायसंभूदो। भावणिमित्तो बंधो भावो रदिरागदोसमोहजुदो९६६ योगनिमित्तं ग्रहणं योगो मनोवचनकायसंभूतः । भावनिमित्तो बंधो भावो रतिरागद्वेषमोहयुतः ॥ ९६६ ॥
अर्थ-कर्मका ग्रहण योगके निमित्तसे होता है, योग मनवचनकायसे उपजा है अर्थात् तीनोंकी क्रियाको योग कहते हैं यह द्रव्यबंध है। भावके निमितसे हो वह भावबंध है, मिथ्यात्व असंयम कषाय ये भाव जानना ॥ ९६६ ॥ जीवपरिणामहेदू कम्मत्तण पोग्गला परिणमंति । ण दु णाणपरिणदो पुण जीवो कम्मं समादियदि९६७ जीवपरिणामहेतवः कर्मत्वेन पुद्गलाः परिणमंति।। न तु ज्ञानपरिणतः पुनः जीवः कर्म समादत्ते ॥९६७ ॥
अर्थ-जिनको जीवके परिणाम कारण हैं ऐसे रूपादिमान् परमाणु कर्मखरूपसे परिणमते हैं परंतु ज्ञानभावकर परिणत हुआ जीव कर्मभावकर पुद्गलोंको नहीं ग्रहण करता ॥ ९६७ ॥ णाणविण्णाणसंपण्णो झाणज्झणतबोजुदो।