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समयसाराधिकार १०।
.. ३४३ लौकिक और पारलौकिक व्यापारको नहीं जानता हो ऐसे साधुके साथ कभी न रहना चाहिये ॥ ९५८ ॥ आयरियकुलं मुच्चा विहरदि समणोय जो दु एगागी। ण य गेण्हदि उवदेसं पावरसमणोत्ति वुच्चदि दु॥९५९
आचार्यकुलं मुक्त्वा विहरति श्रमणश्च यस्तु एकाकी । न च गृह्णाति उपदेशं पापश्रमण इति उच्यते तु ॥९५९ ॥
अर्थ-जो श्रमण संघको छोड़कर संघरहित अकेला विहार करता है और दिये उपदेशको ग्रहण नहीं करता वह पापश्रमण कहा जाता है ॥ ९५९ ॥ आयरियत्तण तुरिओ पुव्वं सिस्सत्तणं अकाऊण।। हिंडइ ढुंढायरिओ णिरंकुसो मत्तहत्थिव्व ॥९६० ॥
आचार्यत्वं त्वरितः पूर्व शिष्यत्वं अकृत्वा । हिंडति ढोढाचार्यो निरंकुशो मत्तहस्ती इव ॥ ९६०॥
अर्थ-जो पहले शिष्यपना न करके आचार्यपना करनेको वेगवान है वह पूर्वापरविवेक रहित ढोढाचार्य है जैसे अंकुशरहित मतवाला हाथी ॥ ९६०॥ अंवो णिवत्तणं पत्तो दुरासएण जहा तहा । समणं मंदसंवेगं अपुट्टधम्म ण सेविज ॥ ९६१ ॥
आम्रो निंबत्वं प्राप्तो दुराश्रयेण यथा तथा । श्रमणं मंदसंवेगं अपुष्टधर्म न सेवेत ॥ ९६१॥
अर्थ-जैसे दुष्ट आश्रयकर आम नींबपनेको प्राप्त होजाता है उसीतरह धर्मानुरागमें आलसी समाचाररहित दुष्ट आश्रयवाले मुनिको न सेवे ॥ ९६१॥