Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 402
________________ शीलगुणाधिकार ११ । ३६५ रक्तीविय संचरणं दस सीलविराहणा भणिया १०२९ स्त्रीसंसर्गः प्रणीतरसभोजनं गंधमाल्य संस्पर्शः । शयनासनभूषणानि षष्ठं पुनः गीतवादित्रं चैव ॥ १०२८॥ अर्थस्य संप्रयोगः कुशीलसंसर्गः राजसेवा च । रात्रौ अपि च संचरणं दश शीलविराधना भणिताः १०२९ अर्थ - स्त्रीओंके साथ स्नेह, पुष्ट आहारका ग्रहण, सुगंध द्रव्य और पुष्पों की मालाका धारण रूप शरीर संस्कार, कोमल शय्या, कोमल आसन, कटक आदि आभूषण धारण करना, गीत वांसरी आदि वाजा, सुवर्ण आदि धनका संग्रह, कुशीली जनोंकी संगति, राजसेवा, विना कारण रात्रिमें चलना - ये दस शीलकी विराधना ( नाशक ) कहीं हैं । इनसे गुणें तो चौरासी हजार भेद होते हैं ।। १०२८ - १०२९ ॥ आकंपिय अणुमणिय जं दिट्ठ वादरं च सुहुमं च । छष्णं सद्दाकुलियं बहुजणमव्वन्त तस्सेवी ॥ १०३० ॥ आकंपितं अनुमानितं यद् दृष्टं बादरं च सूक्ष्मं च । छन्नं शब्दाकुलितं बहुजनमव्यक्तं तत्सेवी ।। १०३० ॥ अर्थ - आकंपित अनुमानित दृष्ट वादर सूक्ष्म प्रच्छन्न शब्दाकुलित बहुजन अव्यक्त तत्सेवी - ये दस आलोचना दोष हैं । इनको गुणनेसे आठ लाख चालीस हजार भेद हुए ॥। १०३० ॥ आगे शुद्धिरूप प्रायश्चितके दस भेद कहते हैं;आलोयण पडिक्कमणं उभय विवेगो तथा विउस्सग्गो । तव छेदो मूलंपि य परिहारो चेव सद्दहणा ॥ १०३१ आलोचनं प्रतिक्रमणं उभयं विवेकः तथा व्युत्सर्गः ।

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