Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

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Page 409
________________ मूलाचार अर्थ—भवन आदि सर्वार्थसिद्धिपर्यंत जिस विमान में सीपके पुटके आकार उपपादशिलाके ऊपर रत्नोंकर जडित सब आभूषणोंसे शोभित पलंगपर देव उत्पन्न होता है उसी जगह अपने यौवनवाले भूषित शरीर से समय समय प्रति पर्याष्ठ ( पूर्ण ) होताजाता है || अब देहसूत्रका वर्णन करते हैं; देहस्स य व्वित्ती भिण्णमुहत्तेण होइ देवाणं । सव्वंगभूसणगुणं जोव्वणमवि होदि देहम्मि ॥ १०५० ॥ देहस्य च निर्वृतिः भिन्नमुहूर्तेन भवति देवानां । सर्वागभूषणगुणं यौवनमपि भवति देहे ।। १०५० ॥ अर्थ – शरीरकी निष्पत्ति देवोंके अंतर्मुहूर्तसे होती है और देह में सब अंगोंको भूषित करनेवाली यौवन अवस्था भी अंतर्मु हूर्तसे होती है ॥ १०५० ॥ ३७२ कणयमिव णिरुवलेवा णिम्मलगत्ता सुगंधणीसासा । णादिवरचारुरूवा समचतुरंसोरुसंठाणं ॥ १०५१ ॥ कनकमिव निरुपलेपा निर्मलगात्रा सुगंधनिश्वासाः । अनादिपरचारुरूपाः समचतुरस्रोरुसंस्थानाः ॥ १०५१ ॥ अर्थ-वे देव सुवर्णके समान मलसे रहित हैं निर्मल शरीरवाले हैं जिनके श्वासोच्छ्वास सुगंधवाले हैं बाल वृद्ध अवस्था न होनेसे सुंदररूपवाले हैं यथास्थान न्यूनाधिकतारहित ऐसे समचतुरस्र नामा उत्तम संस्थानवाले हैं ॥ १०५१ ॥ केसह मंसुलोमा चम्मवसारुहिरमुत्तपुरिसं वा । वट्टी व सिरा देवाण सरीरसंठाणे ॥ १०५२ ॥ केशनखस्मश्रुलोमा चर्मवसारुधिरमूत्रपुरीषाणि वा ।

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