Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala
________________
३७०
मूलाचार
करके मैं अब पर्याप्तिके अधिकारको पूर्व कथित आगमके अनुसार कहता हूं ॥ १०४२ ॥ पज्जत्ती देहोवि य संठाणं कायइंदियाणं च । जोणी आउ पमाणं जोगो वेदो य लेस पविचारो॥ उववादो वट्टणमो ठाणं च कुलं च अप्पबहुठो य । पयडिहिदिअणुभागप्पदेसबंधो य सुत्तपदा ॥ १०४४ पर्याप्तयो देहोपि च संस्थानं कायेंद्रियाणां च । योनय आयुः प्रमाणं योगो वेदश्च लेश्या प्रविचारः १०४३ उपपाद उद्वतनं स्थानं च कुलानि च अल्पबहुत्वं च । प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबंधश्च सूत्रपदानि ॥ १०४४ ॥
अर्थ-पर्याप्ति शरीर कायकी रचना इंद्रिय संस्थान योनि आयु आयुदेह का प्रमाण योग वेद लेश्या प्रविचार उपपाद उद्वर्तन जीवस्थानादि स्थान कुल अल्पबहुत्व प्रकृतिबंध स्थितिबंध अनुभागबंध प्रदेशबंधरूप बंध-ये सोलह सूत्र अथवा भेदसे बीससूत्र होते हैं उनका कथन क्रमसे करते हैं ॥ १०४३-१०४४ ॥ आहारे य सरीरे तह इंदिय आणपाण भासाए । होति मणोवि य कमसो पन्जत्तीओ जिणक्खादा१०४५
आहारस्य च शरीरस्य तथा इंद्रियस्य आनप्राणयोः भाषायाः। भवंति मनसोपि च क्रमशः पर्याप्तयो जिनाख्याताः १०४५
अर्थ-आहार पर्याप्ति ( निष्पत्ति ) शरीर पर्याप्ति इंद्रियकी पर्याप्ति श्वासोच्छासपर्याप्ति भाषापर्याप्ति मनःपर्याप्ति-ऐसे छह पर्याप्ति जिनदेवने कहीं हैं ॥ १०४५ ॥ एइंदियेसु चत्तारि होति तह आदिदो य पंच भवे ।
Page Navigation
1 ... 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470