Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala
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मूलाचार
- तपश्छेदो मूलमपि च परिहारश्चैव श्रद्धानं ॥ १०३१॥
अर्थ-आलोचना प्रतिक्रमण उभय विवेक व्युत्सर्ग तप छेद मूल परिहार श्रद्धान इन दस भेदोंको गुणनेसे चौरासी लाख भेद गुणोंके होते हैं । इन सब भेदोंमें जहां दोष कहे गये हों उनके विपरीत गुण समझना ॥ १०३१ ॥ - इस तरह चौरासी लाख गुण हैं । पाणादिवादविरदे अतिकमणेदोसकरणउम्मुक्के। . पुढवीए पुढवीपुणरारंभसु संजदे धीरे ॥ १०३२॥ इत्थीसंसग्गविजुदे आकंपियदोसकरणउम्मुक्के । आलोयणसोधिजुदे आदिगुणो सेसया णेया ॥१०३३ प्राणातिपातविरतस्य अतिक्रमणदोषकरणोन्मुक्तस्य । पृथिव्या पृथिवीपुनरारंभेषु संयतस्य धीरस्य ॥१०३२ ॥ स्त्रीसंसर्गवियुतस्य आकंपितदोषकरणोन्मुक्तस्य । आलोचनशुद्धियुतस्य आदिगुणः शेषा ज्ञेयाः ॥ १०३३ ॥
अर्थ-हिंसासे रहित अतिक्रमणदोष करनेसे रहित पृथिवीकायसे तथा पृथिवीकायिककी पीडा-विराधनासे रहित स्त्रीकी संगतिसे रहित आकंपित दोषके करनेसे रहित आलोचनकी शुद्धिकर युक्त संयमी धीर वीर मुनिके पहिला गुण अहिंसानामा होता है । इसीतरह अन्यगुण भी जानना ॥ १०३२-१०३३ ।। सीलगुणाणं संखा पत्थारो अक्खसंकमो चेव । णटुं तह उद्दिष्टं पंचवि वत्थूणि णेयाणि ॥ १०३४ ॥
शीलगुणानां संख्या प्रस्तारः अक्षसंक्रमश्चैव । नष्टं तथा उद्दिष्टं पंचापि वस्तूनि ज्ञेयानि ॥ १०३४ ॥
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