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मूलाचार
वाले खमत परमतके जाननेवाले और विनयसहित हैं। जिनने पुण्य पापका खरूप जान लिया है जिनमतमें स्थित सब द्रव्योंका खरूप जिनने जानलिया है हाथ पैरकर ही जिनका शरीर ढका हुआ है और ध्यानमें उद्यमी ऐसे मुनि होते हैं। ८२९-८३५॥ ___ आगे उज्झनशुद्धिको कहते हैंते छिण्णणेहबंधा णिण्णेहा अप्पणो सरीरम्मि। ण करंति किंचि साहू परिसंठप्पं सरीरम्मि ॥८३६॥ ते छिन्नस्नेहबंधा निस्नेहा आत्मनः शरीरे।
न कुर्वति किंचित् साधवः परिसंस्कारं शरीरे ॥ ८३६ ॥ __ अर्थ-पुत्र स्त्री आदिमें जिनने प्रेमरूपी बंधन काटदिया है
और अपने शरीरमें भी ममतारहित ऐसे साधु शरीरमें कुछ भी सानादि संस्कार नहीं करते ॥ ८३६ ॥ मुहणयणदंतधोयणमुव्वट्टण पादधोयणं चेव । संवाहण परिमद्दण सरीरसंठावणं सव्वं ॥ ८३७ ॥ भूवणवमण विरेयण अंजण अभंग लेवणं चेव । णत्थुयवत्थियकम्मं सिरवेज्झं अप्पणो सव्वं ॥८३८॥ मुखनयनदंतधावनमुद्वर्तनं पादधावनं चैव। संवाहनं परिमर्दनं शरीरसंस्थापनं सर्व ॥ ८३७॥ धृपनं वमनं विरेचनं अंजनं अभ्यंगं लेपनं चैव । नासिकाबस्तिकर्म शिरावेधं आत्मनः सर्व ॥ ८३८ ॥
अर्थ-मुख नेत्र और दांतोंका धोना शोधना पखालना उवटना करना पैर धोना अंगमर्दन कराना मुट्ठीसे शरीरका ताडन करना काठके यंत्रसे शरीरका पीडना ये सब शरीरके संस्कार हैं।