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अनगारभावनाधिकार ९। अर्थ-उत्तम चारित्रवाले मुनियोंके ये नाम हैं-श्रमण संयत ऋषि मुनि साधु वीतराग अनगार भदंत दांत यति । तपसे आत्माको खेदयुक्त करे वह श्रमण, इंद्रियोंको वश करे वह संयत, सब पापोंको दूर करे अथवा सात ऋद्धियोंको प्राप्त हो वह ऋषि, खपरकी अर्थसिद्धिको जाने वह मुनि, सम्यग्दर्शनादिको साधे वह साधु, जिसका राग नष्ट होगया वह वीतराग, घर आदि परिग्रहरहित हो वह अनगार, सब कल्याणोंको प्राप्त हो वह भदंत, पंचेंद्रियोंके रोकनेमें लीन वह दांत और चारित्रमें जो यत्न करे वह यति कहा जाता है ॥ ८८६ ॥ अणयारा भयवंता अपरिमिदगुणा थुदा सुरिंदेहि । तिविहेणुत्तिण्णपारे परमगदिगदे पणिवदामि ॥८८७॥
अनगारान् भगवतः अपरिमितगुणान् स्तुतान सुरेंद्रैः । त्रिविधैरुत्तीर्णपारान् परमगतिगतान् प्रणिपतामि॥८८७॥
अर्थ- इसप्रकार अनंतचतुष्टयको प्राप्त सब गुणोंके आधार इंद्रोंकर स्तुति किये गये शुद्ध दर्शनादिरूप परिणत हुए संसारसमुद्रसे पार हुए ऐसे घररहित मुनियोंको मनवचनकायसे मैं नमस्कार करता हूं ॥ ८८७ ॥ एवं चरियविहाणं जो काहदि संजदो ववसिदप्पा । णाणगुणसंपजुत्तो सो गाहदि उत्तमं ठाणं ॥ ८८८ ॥
एवं चर्याविधानं यः करोति संयतो व्यवसितात्मा । ज्ञानगुणसंप्रयुक्तः स गच्छति उत्तमं स्थानं ॥ ८८८ ॥ अर्थ-इस प्रकार दश सूत्रोंसे कहे गये चर्याविधानको तपमें