Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala
________________
३२८
मूलाचार
तह्मा जीवदयाए पडिलिहणं धारए भिक्खू ॥ ९९९ ॥ सूक्ष्मा हि संति प्राणा दुष्प्रेक्ष्या अक्ष्णा अग्राह्या हि । तस्मात् जीवदयायाः प्रतिलेखनं धारयेत् भिक्षुः ॥ ९११ ॥ अर्थ - अत्यंत छोटे द्वींद्रिय केंद्रिय जीव हैं वे बहु कष्टसे देखने में आते हैं और इस चर्मचक्षुसे नहीं देखे जासकते इसलिये जीवदया पालनेकेलिये साधु मयूरपीछी अवश्य रखे ॥ ९११ ॥ उच्चारं परसवणं णिसि सुत्तो उट्ठदो हु काऊण । अप्प डिलिहिय सुवंतो जीवबहं कुणदि णियदं तु९१२ उच्चारं प्रस्रवणं निशि सुप्त उत्थितो हि कृत्वा । अप्रतिलेख्य स्वपन् जीववधं करोति नियतं तु ॥ ९९२ ॥ अर्थ - रात में सोतेसे उठा फिर मलका क्षेपन मूत श्लेष्मा आदिका क्षेपण कर सोधन विना किये फिर सोगया ऐसा साधु पीछीके विना जीवहिंसा अवश्य करता है ॥ ९१२ ॥ णय होदि णयणपीडा अच्छिपि भमाडिदे दु पडिलेहे । तो सुमादी लहुओ पडिलेहो होदि कायव्वो ॥९९३॥
न च भवति नयनपीडा अक्षिण अपि भ्रामिते तु प्रतिलेख्ये । ततः सूक्ष्मादिः लघुः प्रतिलेखो भवति कर्तव्यः ॥ ९९३ ॥ अर्थ - जिसकारण मयूर पीछी नेत्रोंमें फिरानेपर भी नेत्रों को पीडा नहीं देती इसी कारण सूक्ष्म लघु आदि गुण युक्त मयूर पीछी रखनी चाहिये ॥ ९१३॥
ठाणे चकमणादाणणिक्खेवे सयणआसण पयत्ते । पडिलेहणेण पडिलेहिज्जइ लिंगं च होइ सपक्खे॥९१४ स्थाने चंक्रमणादाननिक्षेपे शयनासने प्रयत्नेन ।
Page Navigation
1 ... 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470