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अनगारभावनाधिकार ९। ३११ प्रमाद रहित होते हैं तप चारित्र और तेरह प्रकार करणोंमें उद्यमी हुए पापोंके नाश करनेवाले होते हैं ॥ ८६२ ॥ हेमंत धिदिमंता सहंति ते हिमरयं परमघोरं । अंगेसु णिवडमाणं णलिणिवणविणासयं सीयं।।८६३॥ हेमंते धृतिमंतः सहते ते हिमरजः परमघोरं । अंगेषु निपतत् नलिनीवनविनाशकं शीतं ॥ ८६३ ॥
अर्थ-धीर्ययुक्त हुए वे मुनि हेमंतऋतुमें अत्यंत दुःसह कमलिनी आदि वनस्पतियों का नाशक ठंडे ऐसे बर्फको अंगोंके ऊपर पड़ते हुए सहन करते हैं दुःख नहीं मानते ॥ ८६३ ॥ जल्लेण मइलिदंगा गिटे उण्णादवेण दड्ढगा। चलृति णिसिटुंगा सूरस्स य अहिमुहा सूरा ॥ ८६४॥
जल्लेन मलिनांगां ग्रीष्मे उष्णातपेन दग्धांगाः । तिष्ठंति निसृष्टांगा सूर्यस्य च अभिमुखाः शूराः ॥ ८६४॥
अर्थ-शरीरमलसे मैला जिनका अंग है गरमीकी ऋतुमें गरम धूप करके जिनका सब शरीर अधजला होगया है ऐसे शूर वीर महामुनि निश्चल अंग हुए सूर्य के सामने आसनसे तिष्ठते हैं दुःख नहीं मानते ॥ ८६४ ॥ धारंधयारगुविलं सहंति ते वादवाद्दलं चंडं । रतिदियं गलंतं सप्पुरिसा रुक्खमूलेसु ॥ ८६५॥ धारांधकारगहनं सहते ते वातवार्दलं चंडं। रात्रिंदिवं गलंतं सत्पुरुषा वृक्षालेषु ॥ ८६५ ॥ अर्थ-वर्षाऋतुमें जलधाराके अंधकारकर गहन रातदिन