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द्वादशानुप्रेक्षाधिकार ८। अर्थ-किसी तरह मनुष्य जन्म भी मिल गया तौभी आर्यदेश, शुद्ध कुलमें जन्म, सर्वांगपूर्णता, नीरोगता, सामर्थ्य, विनय, आचार्योंका उपदेश, उसका ग्रहण करना, चिंतवन करना, धारणा रखना-ये सब आगे आगेके क्रमसे लोकमें मिलने अतिकठिन हैं। लद्धसुवि एदेसु अबोधी जिणसासणमिण हुसुलहा। कुपहाणमाकुलत्ता जं बलिया रागदोसा य ॥ ७५७ ॥
लब्धेष्वपि एतेषु च बोधिः जिनशासने न हि सुलभा । कुपथानामाकुलत्वात् यत् बलिष्ठौ रागद्वेषौ च ॥ ७५७ ॥
अर्थ--पूर्वकथित मनुष्यजन्म आदिके मिलनेपर भी जिनमतमें कही गई सम्यग्दर्शनकी विशुद्धिका पाना सुलभ नहीं है अति दुर्लभ है क्योंकि कुमार्गोंकी आकुलतासे यह जगत् आकुल होरहा है। उसमें राग द्वेष ये दोनों बलवान हैं ॥ ७५७ ॥ सेयं भवभयमहणी बोधी गुणवित्थडा मए लद्धा । जदि पडिदा ण हु सुलहा तह्माण खमं पमादो मे७५८ सेयं भवभयमथनी बोधिः गुणविस्तृता मया लब्धा । यदि पतिता न खलु सुलभा तस्मात् न क्षमः प्रमादो मम७५८
अर्थ-संसारके भयको नाश करनेवाली सब गुणोंकी आधारभूत सो यह बोधि अब मैंने पाई है जो कदाचित् संसारसमुद्रमें हाथसे छूटगई तो फिर निश्चयकर उसका मिलना सुलभ नहीं है इसलिये मुझे बोधिमें प्रमाद करना ठीक नहीं है ॥ ७५८ ॥ दुल्लहलाहं लद्धण बोधिं जो णरो पमादेजो। सो पुरिसो कापुरिसो सोयदि कुगदि गदो संतो७५९
दुर्लभलाभां लब्ध्वा बोधिं यो नरः प्रमाद्येत् ।