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मूलाचार
अर्थ-अयोग्य उपकरणोंकर रहित शरीरसे ममत्व छोड़नेवाले नम धीर निर्लोभी मनवचनकायसे शुद्ध ऐसे साधु कर्मके क्षय होनेकी इच्छा करते हैं ॥ ७९६ ॥ मुत्ता णिराववेक्खा सच्छंदविहारिणो जधा वादो। हिंडंति णिरुव्विग्गा जयरायरमंडियं वसुधं ॥७९७॥
मुक्ता निरपेक्षाः स्वच्छंद विहारिणः यथा वातः। हिंडंति निरुद्विग्ना नगराकरमंडितां वसुधां ॥ ७९७ ॥
अर्थ-सब परिग्रह रहित वायुकी तरह खाधीन विचरनेवाले उद्वेगरहित हुए मुनि नगर और खानिकर मंडित पृथिवीपर विहार करते हैं ॥ ७९७ ॥ षसुधम्मिवि विहरंता पीडं ण करेंति कस्सइ कयाई । जीवेसु दयावण्णा माया जह पुत्तभंडेसु ॥ ७९८॥ वसुधायामपि विहरंतः पीडां न कुर्वति कस्यचित् कदाचित् । जीवेषु दयापन्ना माता यथा पुत्रभांडेषु ॥ ७९८ ॥
अर्थ-सब जीवोंमें दयाको प्राप्त सब साधु पृथिवीपर विहार करते हुए भी किसी जीवको कभी भी पीड़ा नहीं करते जैसे माता पुत्रके ऊपर हित ही करती है उसीतरह सबका हित ही चाहते हैं ॥ ७९८ ॥ जीवाजीवविहत्तिं णाणुजोएण सुदु णाऊण । तो परिहरंति धीरा सावलं जेत्तियं किंचिं ॥७९९ ॥ जीवाजीवविभक्तिं ज्ञानोद्योतेन सुष्ठ ज्ञात्वा । ततः परिहरंति धीराः सावधं यावत् किंचित् ॥ ७९९ ॥ अर्थ-पर्याय सहित जीव अजीवके भेदोंको ज्ञानके प्रकाशसे