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मूलाचार -
पुरुषोपि तत्र स्त्री पुमांच अमांश्च भवति जगति ॥ ७१६ ॥ अर्थ — इस संसार में माता है वह पुत्री हो जाती है और पुत्री माता होजाती है । पुरुष स्त्री होजाता है और स्त्री पुरुष और नपुंसक होजाती है ॥ होऊण तेयसत्ताधिओ द बलविरियरूवसंपण्णो । दु जादो वच्चरे किमि धिगत्थु संसारवासस्स ॥७१७|| भूत्वा तेजः सत्त्वाधिकस्तु बलवीर्यरूपसंपन्नः ।
७१६ ॥
जातः वर्चोगृहे कृमिः धिगस्तु संसारवासम् ॥ ७१७ ॥
अर्थ - प्रताप सुंदरता से अधिक बलवीर्यरूप इनसे परिपूर्ण ऐसा राजा भी कर्मवश अशुचि (मैले) स्थानमें लट जीव होजाता हैं । इसलिये ऐसे संसार में रहनेको धिक्कार हो ॥ ७१७ ॥ धिन्भवदु लोगधम्मं देवावि य सुरवदीय महधीया । भोत्तूण य सुहमतुलं पुणरवि दुक्खावहा होंति ॥७१८
धिग्भवतु लोकधर्म देवा अपि च सुरपतयो महर्धिकाः । भुक्त्वा च सुखमतुलं पुनरपि दुःखावहा भवंति ।। ७१८ ॥ अर्थ — लोकके स्वभावको धिक्कार हो जिससे कि देव और महान् ऋद्धिवाले इन्द्र अनुपमसुखको भोगकर पश्चात् दुःखके भोगनेवाले होते हैं || ७१८ ॥ णाऊण लोग सारं णिस्सारं दीहगमणसंसारं । लोगग्गसिहरवासं झाहि पयत्तेण सुहवासं ॥ ७१९ ॥ ज्ञात्वा लोकसारं निस्सारं दीर्घगमनसंसारं । लोकाग्रशिखरवासं ध्याय प्रयत्नेन सुखवासं ॥ ७१९ ॥ अर्थ - इसप्रकार लोकको निस्सार ( तुच्छ ) जानकर तथा