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मूलाचार
और गुरुकुलमें ( आम्नायमें ) मैं आपका हूं ऐसा कहकर उनके अनुकूल आचरण करना वह उपसंपत् है । ऐसे दश प्रकार औधिक समाचार कहा ॥ १२६।१२७।१२८ ॥ ___ अब पदविभागिक समाचार कहनेकी प्रतिज्ञा करते हैं;
ओधियसामाचारो एसो भणिदो हु दसविहो णेओ। एत्तो य पदविभागी समासदो वण्णइस्सामि॥१२९॥
औधिकसमाचारः एषः भणितः हि दशविधो ज्ञेयः । इतश्च पदविभागी समासतः वर्णयिष्यामि ॥ १२९ ॥
अर्थ—यह औधिकसमाचार संक्षेपसे दशप्रकार कहा हुआ जानना, अब पदविभागी समाचारको संक्षेपसे कहूंगा ॥ १२९ ॥ उग्गमसूरप्पहुदी समणाहोरत्तमंडले कसिणे । जं अच्चरंति सददं एसो भणिदो पदविभागी ॥१३०॥ उद्गमसूरप्रभृतौ श्रमणा अहोरात्रमंडले कृत्स्ने । यदाचरंति सततं एष भणितः पदविभागी ॥ १३० ॥
अर्थ-जिस समय सूर्य उदय होता है वहांसे लेकर समस्त दिनरातकी परिपाटीमें मुनिमहाराज नियमादिकोंको निरंतर आचरण करें सो यह प्रत्यक्षरूप पदविभागी समाचार जिनेंद्रदेवने कहा है ॥ १३० ॥
आगे औधिकके दश भेदोंका स्वरूप कहते हुए इच्छाकारको कहते हैं;संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे । जोगग्गहणादीसु अ इच्छाकारो दु कादब्वो ॥१३१॥
संयमज्ञानोपकरणे अन्योपकरणे च याचने अन्ये ।