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पंचाचाराधिकार ५।
१२७ संभावनाव्यवहारे भावे औपम्यसत्ये च ॥३०८॥
अर्थ-सत्यवचनके दस भेद हैं-जनपदसत्य, संमतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, संभावनासत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य, उपमासत्य ॥ ३०८ ॥ जणपदसचं जध ओदणादि रुचिदे य सव्वभासाए। बहुजणसम्मदमवि होदि जं तु लोए तहा देवी ३०९
जनपदसत्यं यथा ओदनादिरौचित्ये च सर्वभाषया । बहुजनसम्मतमपि भवति यत्तु लोके तथा देवी ॥ ३०९॥
अर्थ-देशसत्य वह है कि जो सब भाषाओंसे भातके नाम जुदे २ बोले जाते हैं जैसे चोरू कूल भक्त । और बहुतजनोंकर माना गया जो नाम वह संमतसत्य है जैसे लोकमें राजाकी स्त्रीको देवी कहना ॥ ३०९॥ ठवणा ठविदं जह देवदादि णामं च देवदत्तादि । उक्कडदरोत्ति वण्णे रूवे सेओ जध बलाया ॥३१०॥ स्थापना स्थापितं यथा देवतादि नाम च देवदत्तादि । उत्कटतर इति वर्णेन रूपे श्वेता यथा बलाका ॥ ३१०॥
अर्थ-जो अहंत आदिकी पाषाण. आदिमें स्थापना वह स्थापनासत्य है । जो गुणकी अपेक्षा न रखकर व्यवहारके लिये देवदत्त आदि नाम रखना वह नाम सत्य है और जो रूपके बहुतपनेसे कहना कि बगुलाओंकी पंक्ति सफेद होती है यह रूमसत्य है ॥ ३१० ॥ अण्णं अपेच्छसिद्धं पडुच्चसत्यं जहा हवदि दिग्धं । ववहारेण य सचं रज्झदि कूरो जहा लोए ॥ ३११॥