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षडावश्यकाधिकार ७।
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आगे आवश्यककी नियुक्ति ( शब्दार्थ) कहते हैं;ण वसो अवसो अवसस्स कम्ममावासयंत्ति बोधव्वा। जुत्तित्ति उवायत्ति यणिरवयवा होदि णिजुत्ती ॥५१५ न वशः अवशः अवशस्य कर्म आवश्यकमिति बोद्धव्यं । युक्तिरिति उपाय इति च निरवयवा भवति नियुक्तिः॥५१५॥
अर्थ-जो कषाय रागद्वेष आदिके वशीभूत न हो वह अवश है उस अवशका जो आचरण वह आवश्यक है । तथा युक्ति उपायको कहते हैं जो अखंडित युक्ति वह नियुक्ति है आवश्यककी जो नियुक्ति ( संपूर्ण उपाय ) वह आवश्यक नियुक्ति है ॥ ५१५ ॥
अब आवश्यकके छह भेद कहते हैंसामाइय चउवीसत्थव वंदणयं पडिक्कमणं । पचक्खाणं च तहा काओसग्गो हवदि छट्ठो ॥५१६॥
सामायिकं चतुर्विंशस्तवः वंदना प्रतिक्रमणं । प्रत्याख्यानं च तथा कायोत्सर्गो भवति षष्ठः ॥ ५१६ ॥
अर्थ-सामायिक चतुर्विंशतिस्तव वंदना प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान कायोत्सर्ग ये छह आवश्यकनियुक्तिके भेद हैं ॥ ५१६ ॥
आगे सामायिकनियुक्तिको कहते हैंसामाइयणिज्जुत्ती वोच्छामि जधाकम्मं समासेण । आयरियपरंपरए जहागदं आणुपुवीए ॥५१७॥ सामायिकनियुक्तिं वक्ष्ये यथाक्रमं समासेन । आचार्यपरंपरया यथागतं आनुपूर्व्या ॥ ५१७॥ अर्थ-मैं वट्टकेर नामा ग्रंथकर्ता सामायिकके संपूर्ण उपायोंको