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मूलाचारजीवो दु पडिक्कमओ व्वे खेत्ते य काल भावे य । पडिगच्छदि जेण जह्मि तं तस्स भवे पडिक्कमणं॥६१५॥ , जीवस्तु प्रतिक्रामकः द्रव्ये क्षेत्रे च काले भावे च ।
प्रतिगच्छति येन यस्मिन् तत्तस्य भवेत् प्रतिक्रमणं ॥६१५॥
अर्थ-जीव है वह द्रव्य क्षेत्र काल भावमें प्रतिक्रामक है। जिस परिणामसे चारित्रके अतीचारको धोकर जिस चारित्रशुद्धिमें प्राप्त हो वह परिणाम उस जीवका प्रतिक्रमण है ॥ ६१५॥ . पडिकमिदव्वं व्वं सच्चित्ताचित्तमिस्सियं तिविहं । खेत्तं च गिहादीयं कालो दिवसादिकालह्मि ॥६१६॥ . प्रतिक्रमितव्यं द्रव्यं सचित्ताचित्तमिश्रकं त्रिविधं । क्षेत्रं च गृहादिकं कालः दिवसादिकाले ॥ ६१६ ॥ अर्थ-सचित्त अचित्त मिश्ररूप जो त्यागने योग्य द्रव्य है वह प्रतिक्रमितव्य है, घर आदि क्षेत्र हैं, दिवस मुहूर्त आदि काल हैं। जिस द्रव्य आदिसे पापास्रव हो वह त्यागने योग्य है ॥ ६१६ ॥ मिच्छत्तपडिक्कमणं तह चेव असंजमे पडिक्कमणं । कसाएसु पडिकमणं जोगेसु य अप्पसत्येसु ॥६१७॥ मिथ्यात्वप्रतिक्रमणं तथा चैव असंयमे प्रतिक्रमणं । कषायेषु प्रतिक्रमणं योगेषु च अप्रशस्तेषु ॥ ६१७ ॥
अर्थ-मिथ्यात्वका प्रतिक्रमण, उसीतरह असंयमका प्रतिक्रमण, क्रोधादि कषायोंका प्रतिक्रमण, और अशुभ योगोंका प्रतिकमण ( त्याग ) करना चाहिये ॥ ६१७ ॥ काऊण य किदियम्मं पडिलेहिय अंजलीकरणसुद्धो। , आलोचिज सुविहिदो गारव माणं च मोत्तूण ॥६१८॥