________________
२३६
मूलाचार
अर्थ - जिस व्रत में अपने अथवा अन्यके अतीचार लगता हो उस व्रतके अतीचार में बीचके तीर्थकरों के समयमें प्रतिक्रमण है ॥ इरियागोयरसुमिणा दिसव्वमाचरदु मा व आचरदु । पुरिम चरिमादु सव्वे सव्वं णियमा पडिकमंदि ।। ६२८ ।। ईर्यागोचरखमादिसर्व आचरतु मा वा आचरतु । पूर्वे चरमे तु सर्वे सर्वान् नियमान् प्रतिक्रमते ॥ ६२८ ॥ अर्थ - ऋषभदेव व महावीर प्रभुके शिष्य इन सब ईयगोचरी स्वप्नादिसे उत्पन्न हुए अतीचारोंको प्राप्त हो अथवा मत प्राप्त हो तौभी प्रतिक्रमणके सब दंडकों को उच्चारण करते हैं ॥ ६२८ ॥ मज्झिमया दिबुद्धी एयग्गमणा अमोह लक्खा य । तह्मा हु जमाचरंति तं गरहंता वि सुज्झंति ॥ ६२९ ॥
मध्यमा दृढबुद्धय एकाग्रमनसः अमोहलक्षाश्च । तस्मात् हि यमाचरंति तं गर्हतोपि शुध्यति ॥ ६२९ ॥ अर्थ - मध्यम तीर्थंकरोंके शिष्य स्मरण शक्तिवाले हैं स्थिर चित्तवाले होते हैं परीक्षापूर्वक कार्य करनेवाले होते हैं इसकारण जिस दोषको प्रगट आचरण करते हैं उस दोषसे अपनी निंदा करते हुए शुद्ध चारित्रके धारण करनेवाले होते हैं ।। ६२९ ॥ पुरिमचरिमादु जह्मा चलचित्ता चेव मोहलक्खा य । तो सव्वपडिक्कमणं अंधलघोडय दितो ॥ ६३० ॥ पूर्वचरमास्तु यस्मात् चलचित्ताचैव मोहलक्षाच । तस्मात् सर्वप्रतिक्रमणं अंधलघोटकः दृष्टांतः ।। ६३० ॥ अर्थ – आदि अंतके तीर्थंकरोंके शिष्य चलायमानचित्तवाले होते हैं मूढबुद्धि होते हैं इसलिये उनके सब प्रतिक्रमण दंडकका