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___ मूलाचारणिव्वाणसाधए जोगे सदा जुजति साधवो। समा सव्वेसु भूदेसु तह्मा ते सव्वसाधवो ॥५१२॥ निर्वाणसाधकान् योगान् सदा युंजंति साधवः । समाः सर्वेषु भूतेषु तस्सात् ते सर्वसाधवः ॥ ५१२ ॥
अर्थ-मोक्षकी प्राप्ति करानेवाले मूलगुणादिक तपश्चरणोंको जो साधु सर्वकाल अपने आत्मासे जोड़ें और सब जीवोंमें समभावको प्राप्त हुए हों इसलिये वे सर्वसाधु कहलाते हैं ॥५१२॥ एवं गुणजुत्ताणं पंचगुरूणं विसुद्धकरणेहिं । जो कुणदि णमोकारं सोपावदि णिव्वुदि सिग्धं॥५१३॥ _एवं गुणयुक्तानां पंचगुरूणां विशुद्धकरणैः ।
यः करोति नमस्कारं स प्राप्नोति नितिं शीघ्रं ॥ ५१३॥
अर्थ-ऐसे पूर्वोक्तगुणों सहित पंच परमेष्टियोंको निर्मल मन वचन कायसे जो नमस्कार करता है वह शीघ्र ही मोक्षसुखको पाता है ॥ ५१३ ॥ एसो पंच णमोयारो सव्वपावपणासणो। मंगलेसु य सव्वेसु पढमं हवदि मंगलं ॥५१४॥
एषः पंचनमस्कारः सर्वपापप्रणाशकः । मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं भवति मंगलं ॥ ५१४ ॥ .
अर्थ-यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापोंका नाश करनेवाला है और सब मंगलोंमें यह पंचनमस्कार मुख्य मंगल है। मं जो पाप उसको गालै नाश करै अथवा मंग जो सुख उसको दे वह मंगल कहा है ।। ५१४ ॥