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षडावश्यकाधिकार ७। २११ क्रियावान् नित्य कारण कर्ता सर्वव्यापी दूसरेमें प्रवेश न होनेवाले कोई द्रव्य हैं और कोई इनसे उलटे अर्थात् अपरिणामी आदि हैं। आयासं सपदेसं उड्डमहो तिरियलोगं च । खेत्तलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसितं ॥५४६॥ आकाशं सप्रदेशं ऊर्ध्वमधः तिर्यग्लोकं च । . क्षेत्रलोकं विजानीहि अनंतजिनदेशितं ॥ ५४६ ॥ अर्थ-प्रदेश सहित आकाश ऊर्ध्वलोक अधोलोक तिर्यग्लोकरूप तीनप्रकार है उसे क्षेत्रलोक जानना ॥ ५४६ ॥ जं दिढे संठाणं व्वाण गुणाण पजयाणं च । चिण्हलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ॥ ५४७ ॥
यत् दृष्टं संस्थानं द्रव्याणां गुणानां पर्यायाणां च । चिह्नलोकं विजानीहि अनंतजिनदेशितं ॥ ५४७॥
अर्थ-द्रव्योंका जो आकाररूप होना अर्थात् समचतुरस्र आकाररूप जीवद्रव्यका होना इत्यादि तथा गुणोंका आकार पर्यायोंका आकार वह चिह्नलोक है ऐसा जानो, ऐसा जिनेंद्रदेवने कहा है ॥ ५४७॥ कोधो माणो माया लोभो उदिण्णा जस्स जंतुणो। कसायलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं ॥ ५४८ ॥
क्रोधो मानो माया लोभः उदीर्णाः यस्य जंतोः। कषायलोकं विजानीहि अनंतजिनदेशितं ॥ ५४८ ॥
अर्थ-जिस जीवके क्रोध मान माया लोभ-ये चारों कषायें उदयको प्राप्त हों वह कषायलोक है ऐसा जानना ॥ ५४८ ॥ णेरइयदेवमाणुसतिरिक्खजोणि गदा य जे सत्ता ।