________________
षडावश्यकाधिकार ७। २१५ अर्थ-संताप शांत होता है तृष्णाका नाश होता है मलपंककी शुद्धि होती है ये तीन कार्य होते हैं इसलिये यह द्रव्य तीर्थ है ॥ दसणणाणचरित्तें णिजुत्ता जिणवरा दु सव्वेपि । तिहि कारणेहिं जुत्ता तह्मा ते भावदो तित्थं ॥५६०॥ दर्शनज्ञानचारित्रैः निर्युक्ता जिनवरास्तु सर्वेपि । त्रिभिः कारणैः युक्ताः तस्मात् ते भावतस्तीर्थम् ॥५६०॥
अर्थ-सभी जिनदेव दर्शन ज्ञान चारित्रकर संयुक्त हैं। इन तीन कारणोंसे युक्त हैं इसलिये वे जिनदेव भावतीर्थ हैं॥५६०॥ जिदकोहमाणमाया जिदलोहा तेण ते जिणा होति । हंता अरिं च जम्मं अरहंता तेण वुचंति ॥ ५६१॥
जितक्रोधमानमाया जितलोभाः तेन ते जिना भवंति । हंतारः अरीणां च जन्मनः अहंतस्तेन उच्यते ॥ ५६१ ॥
अर्थ-क्रोध मान माया लोभ इन कषायोंको जीत लिया है इसलिये वे भगवान् जिन हैं । और कर्मशत्रुओंके तथा संसारके नाश करनेवाले हैं इसलिये अर्हत कहे जाते हैं ॥ ५६१ ॥ अरिहंति वंदणणमंसणाणि अरिहंति पूयसकारं । अरिहंति सिद्धिगमणं अरहंता तेण उच्चति ॥ ५६२॥
अर्हति वंदनानमस्कारयोः अर्हति पूजासत्कारं । अर्हति सिद्धिगमनं अर्हतः तेन उच्यते ॥ ५६२ ॥
अर्थ-वंदना और नमस्कारके योग्य हैं पूजा और सत्कारके योग्य हैं मोक्ष जानेके योग्य हैं इस कारण वे अर्हत कहे जाते हैं। किह ते ण कित्तणिज्जा सदेवमणुयासुरेहिं लोगेहिं । दसणणाणचरित्ते तव विणओ जेहिं पण्णत्तो॥५६३॥