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पंचाचाराधिकार ५।
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तद्विपरीता भाषा असत्यमृषा भवति दृष्टा ॥३१४ ॥
अर्थ-दस सत्योंसे उलटा जो वचन वह असत्यवचन है, जहां दोनों हैं वह सत्यमृषा है और जो इससे विपरीत है वह असत्यमृषा भाषा है ॥ ३१४ ॥
अब असत्यमृषावचनके भेद कहते हैंआमंतणि आणवणी जायणि संपुच्छणी य पण्णवणी। पञ्चक्खाणी भासा छट्ठी इच्छाणुलोमा य ॥ ३१५॥ संसयवयणी य तहा असचमोसा य अट्ठमी भासा । णवमी अणक्खरगया असच्चमोसा हवदि दिहा ३१६
आमंत्रणी आज्ञापनी याचनी संपृच्छनी च प्रज्ञापनी । प्रत्याख्यानी भाषा षष्ठी इच्छानुलोमा च ॥ ३१५ ॥ संशयवचनी च तथा असत्यमृषा च अष्टमी भाषा । नवमी अनक्षरगता असत्यमृषा भवति दृष्टा ॥ ३१६ ॥
अर्थ-हे देवदत्त ऐसा बोलकर संमुखकरना वह आमंत्रणी भाषा, आज्ञा करनेरूप आज्ञापनी, याचनीभाषा, पूछनेरूप पृच्छनी भाषा, जतलानेरूप प्रज्ञापनी भाषा, त्याग लेनेरूप प्रत्याख्यानी भाषा, इच्छाके अनुकूल बोलनेरूप इच्छानुलोमा छठी भाषा । संशयरूप अर्थको कहनेवाली संशयवचनी भाषा, भैंस आदिका शब्द खरूप आठमी असत्यमृषा है । और अनक्षरी दिव्यध्वनिरूप वाणी वह नौमी अनक्षरगता असत्यमृषा कही है। इन भाषाओंमें विशेषका जानना न होनेसे सत्य भी नहीं कहसकते और सामान्य ज्ञान होनेसे असत्य भी नहीं कहसकते, इसलिये ये नौ असत्यमृषा भाषा कहलाती हैं ॥ ३१५ ॥ १६ ॥
९ मूला.