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मूलाचार
अनीश्वरके तीन भेद व्यक्त अव्यक्त संघाट । दानका खामी देनेकी इच्छा करे और मंत्री आदि मना करें तो दिया हुआ भी भोजन ईश्वर अनीशार्थ है । खामीसे अन्यजनोंकर निषेध किया अनीश्वर कहलाता है वह व्यक्त (वृद्ध) अव्यक्त (बाल ) संघाट (दोनों ) के भेदसे तीन प्रकार है ॥ ४४४ ॥
आगे उत्पादन दोषोंको कहते हैं;धादीदूणिमित्ते आजीवे वणिवगे य तेगिंछे । कोधी माणी मायीलोभी य हवंति दस एदे ॥४४५॥ पुव्वी पच्छा संथुदि विजामंते य चुण्णजोगे य । उप्पादणा य दोसो सोलसमो मूलकम्मे य॥४४६॥
धात्रीदतनिमित्तानि आजीवः वनीपकश्च चिकित्सा । क्रोधी मानी मायी लोभी च भवंति दश एते ॥ ४४५॥ पूर्व पश्चात् संस्तुतिः विद्यामंत्रश्च चूर्णयोगश्च । उत्पादनश्च दोषः षोडश मूलकर्म च ॥ ४४६ ॥
अर्थ-धात्रीदोष, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सा, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, ये दस दोष । तथा पूर्वसंस्तुति, पश्चात् संस्तुति, विद्या, मंत्र, चूर्णयोग, मूलकर्मदोष ये सब मिलकर सोलह उत्पादनदोष हैं ॥ ४४५।४४६ ॥ मजणमंडणधादी खेल्लावणखीरअंबधादी य । पंचविधधादिकम्मेणुप्पादो धादिदोसो दु॥४४७॥
मार्जनमंडनधात्री क्रीडनक्षीरांबधात्री च । पञ्चविधधात्रीकर्मणा उत्पादो धात्रीदोषस्तु ॥ ४४७॥ अर्थ-पोषण करै वह धाय कहलाती है वह पांचप्रकारकी