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पिण्डशुद्धि-अधिकार ६। १८५ करती झूठे मुंह हो, पांच महीना आदि गर्भसे युक्त हो, अंधी हो, भीति आदिके आंतरेसे बैठी हो बैठी हुई हो ऊंची जगहपर बैठी हो, नीची जगहपर बैठी हो, मुंहसे फूक कर अग्नि जलाना काठ आदि डालकर आग जलाना, काठको जलनेके-लिये सरकाना, राखसे अग्निको ढकना, जलादिसे अमिका बुझाना तथा अन्य भी अनिके कार्यकर भोजन देना । गोबर आदि भीतिका लीपना खानादि क्रिया करना दूध पीते बालकको छोड़कर आहार देनाइत्यादि क्रियाओंसे आहार दे तो दायकदोष जानना॥४६९।४७१॥ पुढवी आऊ य तहा हरिदा बीया तसा य सज्जीवा । पंचेहिं तेहिं मिस्सं आहारं होदि उम्मिस्सं ॥ ४७२॥
पृथिव्यापश्च तथा हरिता बीजानि त्रसाश्च सजीवाः । पंचभिस्तैः मिश्र आहारः भवति उन्मिश्रः ॥४७२ ॥
अर्थ-मट्टी अप्रासुक जल पान फूल फल आदि हरी जौ गेंहू तथा द्वींद्रियादिक त्रसजीव-इन पांचोंसे मिला हुआ आहार ले तो उन्मिश्र दोष होता है ॥ ४७२ ॥ तिलतंडुलउसणोदय चणोदय तुसोदयं अविधुत्थं । अण्णं तहाविहं वा अपरिणदं णेव गेण्हिजो ॥४७३॥ तिलतंडुलोष्णोदकं चणोदकं तुषोदकं अविध्वस्तं । अन्यं तथाविधं वा अपरिणतं नैव गृह्णीयात् ॥ ४७३ ॥
अर्थ-तिलके धोनेका जल, चावलका जल, गरम होके ठंडा हुआ जल, चनाका जल, तुषका जल, हरड़का चूर्ण आदिकर भी परिणत न हुआ हो वह नहीं ग्रहण करना । ग्रहण करनेसे अपरिणतदोष लगता है ॥ ४७३ ॥