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पिण्डशुद्धि-अधिकार ६। १९५ नीचा मस्तककर निकलना वह नाभ्यधोनिर्गमन है ९ त्याग की गई वस्तुका भक्षण करना प्रत्याख्यातसेवना है १० जीवबध होना जंतुबध है ११ कौआ आदि ग्रास ले जाय वह काकादिपिंडहरण है १२ पाणिपात्रसे पिंडका गिरजाना पाणितः पिंडपतन है १३ ॥ पाणिपात्रमें किसी जीवका मरजाना पाणिजंतुबध है १४ मांसका दीखना मांसादिदर्शन है १५ देवादिकृत उपद्रव होना उपसर्ग है १६ दोनों पैरोंके बीचमें कोई जीव गिरजाय वह जीवसंपात है १७ भोजन देनेवालेके हाथसे भोजन गिर जाना भाजनसंपात है १८ ॥ अपने उदरसे मल निकल जाय वह उच्चार है १९ मूत्रादि निकलना प्रस्रवण है २० चांडालादि अभोज्यके घरमें प्रवेश हो जाना अभोज्यगृहप्रवेश है २१ मूर्छादिसे आप गिर जाना पतन है २२ बैठ जाना उपवेशन है २३ कुत्ता आदिका काटना सदंश है २४ हाथसे भूमिको छूना भूमिसंस्पर्श है २५ कफ आदि मलका फैंकना निष्ठीवन है २६॥ पेटसे कृमि ( कीडों) का निकलना उदरकृमिनिर्गमन है २७ विना दिया किंचित् ग्रहण करना अदत्तग्रहण है २८ अपने व अन्यके तलवार आदिसे प्रहार हो तो प्रहार है २९ गाम जले तो ग्रामदाह है ३० पावसे भूमिसे उठाकर कुछ लेना वह पादेन किंचित् ग्रहण है ३१ हाथकर भूमिसे कुछ उठाना वह करेण किंचित् ग्रहण है ३२ ॥ ये काकादि बत्तीस अंतराय तथा दूसरे भी चांडालादिस्पर्श कलह इष्टमरण आदि बहुतसे भोजनत्यागके कारण जानना । तथा राजादिका भय होनेसे लोकनिंदा होनेसे संयमके लिये वैराग्यके लिये आहारका त्याग करना चाहिये ॥ ४९५ से ५०० तक ॥