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मूलाचार___ अर्थ-जो वशमें नहीं हैं उनको वशमें करना, जो स्त्री पुरुष वियुक्त हैं उनका संयोग करना-ऐसे मंत्र तंत्रादि उपाय बताके गृहस्थोंसे आहार लेना वह मूलकर्म दोष है । इसतरह ये सोलह उत्पादना दोष हैं ॥ ४६१ ॥ ___ आगे अशनदोषको कहते हैं;संकिदमक्खिदपिहिदसंववहरणदायगुम्मिस्से । अपरिणदलित्तछोडिद एसणदोसाइं दस एदे॥४६२॥
शंकितमृक्षितनिक्षिप्तपिहितसंव्यवहरणदायकोन्मिश्राः। अपरिणतलिप्तत्यक्ताः अशनदोषा दश एते ॥४६२ ॥
अर्थ-शंकित, मृक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त, त्यक्त-ये दस अशनदोष हैं ॥ ४६२॥ असणं च पाणयं वा खादियमध सादियं च अज्झप्पे । कप्पियमकप्पियत्ति य संदिद्धं संकियं जाणे ॥४६३॥
अशनं च पानकं वा खाद्यं अथ स्वाद्यं च अध्यात्मनि । कल्पितमकल्पितमिति च संदिग्धं शंकितं जानीहि ॥४६३॥
अर्थ-भात, दूध, लाडू, इलाइची लवंग आदि चार प्रकारका भोजन आगमके अनुसार मेरे लेने योग्य है या नहीं ऐसे संदेह सहित आहारको लेना वहां शंकित दोष होता है ॥४६३॥ ससिणिद्वेण य देयं हत्थेण य भायणेण दव्वीए। एसो मक्खिददोसोपरिहरदव्वो सदा मुणिणा॥४६४॥
सस्निग्धेन च देयं हस्तेन च भाजनेन दया । एषः मृक्षितदोषः परिहर्तव्यः सदा मुनिना ॥ ४६४ ॥ अर्थ-चिकने हाथ व पात्र तथा कड़छीसे जो भात