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पंचाचाराधिकार ५।
१४१ - अन्यान्यपि एवमादीनि बोद्धव्यानि निरवकांक्षाणि॥३४९॥
अर्थ-मरणपर्यंत चारों प्रकारके आहारका त्याग करना वह निराकांक्ष अनशनतप है। उसके मुख्य तीन भेद हैं-भक्तप्रतिज्ञा, इंगिनीमरण, प्रायोपगमनमरण । जिसमें दोसे लेकर अड़तालीस तक निर्यापकमुनि जिसकी शरीरसेवा करें तथा आप भी अपने अंगोंसे शरीरकी टहल करे ऐसे मुनिके आहारका त्याग वह भक्तप्रतिज्ञा है । जिसमें परके उपकारकी अपेक्षा न हो वह इंगिनीमरण है, और जिसमें आप पर दोनोंकी अपेक्षा न हो वह प्रायोपगमनमरणत्याग है। इत्यादि अन्य भी निराकांक्ष त्यागसे लेकर सर्व निराकांक्ष अनशनतप जानना ॥ ३४९ ॥
अब अवमौदर्यतपका खरूप कहते हैंबत्तीसा किर कवला पुरिसस्स दु होदि पयदि आहारो। एगकवलादिहिं ततो ऊणियगहणं उमोदरियं ॥३५०॥
द्वात्रिंशत् किल कवलाः पुरुषस्य तु भवति प्रकृत्या आहारः। एककवलादिभिस्तत ऊनितग्रहणं अवमौदर्यम् ॥ ३५० ॥
अर्थ-पुरुषका खाभाविक आहार बत्तीस ग्रास होते हैं उनमेंसे एक गस्सा आदि कमती करके लेना वह अवमौदर्य तप है ॥ ३५० ॥ धम्मावासयजोगे णाणादीये उवग्गहं कुणदि। ण य इंदियप्पदोसयरी उमोदरितवोवुत्ती ॥ ३५१ ॥ धर्मावश्यकयोगेषु ज्ञानादिके उपग्रहं करोति । न च इंद्रियप्रद्वेषकरी अवमौदर्यतपोवृत्तिः ॥ ३५१ ॥ अर्थ-क्षमादि धर्मों में, सामायिकादि आवश्यकोंमें, वृक्ष