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मूलाचारबहुसो जेण गच्छंति सो मग्गो फासुओ भवे ॥३०॥ हस्ती अश्वः खर उष्ट्रो वा गोमहिषगवेलकाः । बहुशः येन गच्छंति स माः प्रासुको भवेत् ॥ ३०५॥
अर्थ-हाथी घोडा गधा ऊंट गाय भैंस बकरी आदि जीव बहुत वार जिस रास्तेसे गये हों वह मार्ग प्रासुक है ॥ ३०५॥ इच्छी पुंसादिगच्छंति आदावेण य ज हदं । सत्थपरिणदो चेव सो मग्गो फासुओ हवे ॥ ३०६॥ स्त्रियः पुरुषा अतिगच्छंति आतापेन च यो हतः। शस्त्रपरिणतश्चैव स मार्गः प्रासुकः भवेत् ॥ ३०६ ॥ 'अर्थ-स्त्री पुरुष जिस मार्गमें तेजीसे गमन करें और जो सूर्य आदिके आतापसे व्याप्त हो तथा हल आदिसे जोता गया हो वह मार्ग प्रासुक है । ऐसे मार्गसे चलना योग्य है ॥ ३०६ ॥ सचं असच्चमोसं अलियादीदोसवजमणवजं । वदमाणस्सणुवीची भासासमिदी हवे सुद्धा ॥३०७॥
सत्सं असत्यमृषा अलीकादिदोषवय॑मनवा । वदतः अनुवीच्या भाषासमितिः भवेत् शुद्धा ॥ ३०७॥
अर्थ-द्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षा सत्यवचन, सामान्यवचन, मृषावादादि दोष रहित, पापोंसे रहित आगमके अनुसार बोलनेवाले मुनिके शुद्ध भाषा समिति होती है ॥ ३०७ ॥ ___ आगे सत्यवचनके भेद बतलाते हैं;जणवदसम्मदठवणा णामे रूपे पडुच्चसच्चे य । संभावणववहारे भावे ओपम्मसचे व ॥ ३०८॥
जनपदसम्मतस्थापनायां नाम्नि रूपे प्रतीत्यसये च ।