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समाचाराधिकार ४ । उपाध्याय, प्रवर्तक, जिनसे आचरण स्थिर हो ऐसे स्थविर, और गणधर-ये पांच मुनिराज संघके आधारभूत न हों ॥ १५५ ॥
आगे इन पांचोंका लक्षण कहते हैंसिस्साणुग्गहकुसलो धम्मुवदेसो य संघववओ। मजादुवदेसोवि य गणपरिरक्खो मुणेयन्वो ॥१५६॥ शिष्यानुग्रहकुशलः धर्मोपदेशकश्च संघप्रवर्तकः। मोदोपदेशकोपि च गणपरिरक्षः ज्ञातव्यः ॥१५६ ॥
अर्थ-जो दीक्षादिकर शिष्योंके उपकार करनेमें चतुर हो वह आचार्य है, जो धर्मका उपदेश दे शास्त्र पढावे वह उपाध्याय है, जो चर्या आदिकर संघका उपकार करे प्रवावे वह प्रवर्तक है, जो संघकी रीति स्थिति प्राचीन परंपराकी मर्यादको बतलावे वह स्थविर है और जो गणको पालै रक्षा करै वह गणधर जानना ॥ १५६ ॥ ___ आगे कहते हैं कि चलते हुए मार्गमें जो मिले उसे आचार्यके पास लेजाय;जं तेणंतरलद्धं सच्चित्ताचित्तमिस्सयं दव्वं । तस्स य सो आइरिओ अरिहदि एवंगुणो सोवि १५७
यत् तेनांतरलब्धं सचित्ताचित्तमिश्रकं द्रव्यं । तस्य च स आचार्यः अर्हति एवंगुणः सोपि ॥ १५७ ॥ अर्थ-चलते समय मार्गमें शिष्यादिक चेतन, पुस्तकादि अचेतन, पुस्तक सहित शिष्यादि मिश्र ये पदार्थ मिल जाय तो आगे कहे जानेवाले गुणोंवाला आचार्य ही उनपदार्थों के योग्य है अर्थात् उनको आचार्यके समीप लेजावे ॥ १५७ ॥