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पंचाचाराधिकार ५। आगे मोक्ष पदार्थका वर्णन करते हैं;रागी बंधइ कम्मं मुच्चइ जीवो विरागसंपण्णो । एसो जिणोवएसो समासदो बंधमोक्खाणं ॥ २४७॥
रागी बध्नाति कर्माणि मुंचति जीवः विरागसंपन्नः । एष जिनोपदेशः समासतः बंधमोक्षयोः ॥ २४७॥
अर्थ-रागी जीव कौंको बांधता है वैराग्यको प्राप्त हुआ कर्मोंसे छूट जाता है यह ही उपदेश बंध मोक्षका संक्षेपसे जिनेंद्रदेवने दिया है ॥ २४७ ॥
अब सम्यक्त्वके शंकादि आठ दोषोंको कहते हैं;णव य पदत्था एदे जिणदिहा वण्णिदा मए तच्चा । तत्थ भवे जा संका दसणघादी हवदि एसो॥२४८॥
नव च पदार्था एते जिनदिष्टा वर्णिता मया तत्त्वाः। तत्र भवेत् या शंका दर्शनघाती भवति एषः ॥ २४८॥
अर्थ-जिनभगवानकर उपदेश किये ये नौ पदार्थ यथार्थखरूपसे मैंने वर्णन किये हैं। इनमें जो शंका होना वह दर्शन (श्रद्धान ) को घातनेवाला पहला दोष है ॥ २४८॥ तिविहा य होइ कंखा इह परलोए तधा कुधम्मे य । तिविहं पि जो ण कुज्जा दंसणसुद्धीमुपगदो सो २४९
त्रिविधा च भवति कांक्षा इह परलोके तथा कुधर्मे च । त्रिविधमपि यः न कुर्यात् दर्शनशुद्धिमुपगतः सः॥२४९।।
अर्थ-अभिलाषा तीनप्रकार होती है इसलोकमें संपदा मिलनेकी, परलोकमें संपदा मिलनेकी और कुधर्मकी ( लौकिक