________________
पंचाचाराधिकार ५।
१२१ अर्थ-हास्यसे, भयसे, क्रोधसे, लोभसे मन वचन कायकर किसी समयमें भी विश्वासघातक दूसरेको पीडा करनेवाला झूठ वचन न बोले । वह सत्यव्रत है ॥ २९० ॥ गामे णगरेरणे थूल सचित्तं बहु सपडिवक्खं । तिविहेण वजिव्वं अदिण्णगहणं च तण्णिचं ॥२९१ ग्रामे नगरेऽरण्ये स्थूलं सचित्तं बहु सप्रतिपक्षं । त्रिविधेन वर्जितव्यं अदत्तग्रहणं च तन्नित्यं ॥ २९१ ॥
अर्थ-गाम नगर वन आदिमें स्थूल अथवा सूक्ष्म सचित्त अथवा अचित्त बहुत अथवा थोड़ा भी सुवर्णादि धन धान्य द्विपद चतुष्पदादि परिग्रह विना दिया मिल जाय तो उसे मन वचन कायसे हमेशा त्याग करना (छोड़ना) चाहिये । यह अचौर्यव्रत है ॥ २९१॥ अच्चित्तदेवमाणुसतिरिक्खजादं च मेहुणं चदुधा। तिविहेण तं ण सेवदि णिचं पि मुणी हि पयदमणो॥
अचित्तदेवमानुषतिर्यग्जातं च मैथुनं चतुर्धा । त्रिविधेन तत् न सेवते नित्यं अपि मुनिहि प्रयतमनाः२९२
अर्थ-चित्र लेप आदिकी वनीहुई अचेतन तथा देवी मानुषी तिर्यचिनी सचेतन स्त्री ऐसी चार प्रकार स्त्रीको मन वचन कायसे जो ध्यान खाध्यायमें लगा हुआ मुनि है वह हमेशा किसी समय भी नहीं सेवन करता है । सबको माता बहिन पुत्रीके समान समझता है । यही ब्रह्मचर्यव्रत है ॥२९२ ॥ गामं णगरं रणं थूलं सच्चित बहु सपडिवक्खं । अज्झत्थ बाहिरत्थं तिविहेण परिग्गरं वजे ॥ २९३ ॥