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पंचाचाराधिकार ५। ज्ञान और दर्शन ये दोनों लक्षणवाले सभी जीव होते हैं ॥२२८॥ एवं जीवविभागा बहुभेदा वणिया समासेण । एवंविधभावरहियमजीवदव्वेत्ति विण्णेयं ॥ २२९ ॥
एवं जीवविभागा बहुभेदा वर्णिता समासेन । एवंविधभावरहितमजीवद्रव्यमिति विज्ञेयं ॥ २२९ ॥
अर्थ-इसतरह जीवोंके बहुत भेद संक्षेपसे वर्णन किये। ऐसे जीवके ज्ञानादिधर्मोंसे जो रहित है उसे अजीवद्रव्य जानना चाहिये ॥ २२९॥
आगे अजीवद्रव्यके भेद कहते हैं;अज्जीवा विय दुविहा रूवारूवा य रूविणो चदुधा। खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा अणू य तहा ॥ २३० ॥
अजीवा अपि द्विविधा रूपिणोऽरूपिणश्च रूपिणः चतुर्धा । स्कंधश्च स्कंधदेशः स्कंधप्रदेशः अणुश्च तथा ॥ २३० ॥
अर्थ-अजीवपदार्थके दो भेद हैं रूपी और अरूपी। रूपसे रसगंधवर्ण भी लेना । रूपी पदार्थके चार भेद हैं-स्कंध, स्कंधदेश स्कंधप्रदेश, परमाणु ॥ २३० ॥ खंधं सयलसमत्थं तस्स दु अडं भणंति देसोत्ति । अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेय अविभागी ॥ २३१॥ स्कंधः सकलसमर्थः तस्य तु अर्ध भणंति देश इति । अर्धाधं च प्रदेशः परमाणुः चैव अविभागी ॥ २३१॥
अर्थ-सब भेदोंका समूहरूप पिंडको स्कंध कहते हैं, उसके आधेको देश कहते हैं। उसके आधेको स्कंध प्रदेश तथा निरंशको परमाणु जानना ॥ २३१ ॥