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पंचाचाराधिकार ५।
९७ जलचरपक्षिचतुष्पदउरपरिसपेषु नव भवंति ॥ २२३ ॥
अर्थ-तिर्यंच मत्स्यादि जलचरोंके कुल साढे बारह लाख करोड़ कुल हैं । हंस आदि पक्षियों के बारह लाख करोड़ तथा सिंह आदि चौपायोंके दशलाख करोड़ और गोह सर्प आदि जीवोंके नव लाख करोड़ कुल हैं ॥ २२३ ॥ छव्वीसं पणवीसं चउदस कुलकोडिसदसहस्साई । सुरणेरइयणराणं जहाकम होइ णायव्वं ॥ २२४ ॥ षविंशतिः पंचविंशं चतुर्दश कुलकोटिशतसहस्राणि । सुरनैरयिकनराणां यथाक्रमं भवति ज्ञातव्यम् ॥ २२४ ॥
अर्थ-देवोंके छब्बीसलाखकरोड़, नारकियोंके पच्चीस लाख करोड़ और मनुष्यों के चौदहलाख करोड़ कुल जानना ॥ २२४ ॥ ___ आगे सबका जोड़ कहते हैं;एया य कोडिकोडी वणवदीकोडिसदसहस्साइं। पण्णासं च सहस्सा संवग्गीणं कुलाण कोडीओ२२५
एका च कोटिकोटिः नवनवतिकोटिशतसहस्राणि । पंचाशच सहस्राणि संवर्गेण कुलानां कोट्यः ॥ २२५ ॥
अर्थ-एककोड़ाकोड़ि निन्यानवै लाख पचास हजार करोड़ प्रमाण सब मिलकर सब जीवोंके कुलोंका प्रमाण है ॥ २२५ ॥
आगे जीवोंके योनि भेद कहते हैं;णिच्चिदधादु सत्त य तरु दस विगलिं दिएसु छच्चेव । सुरणरयतिरिय चउरो चउदस मणुए सदसहस्सा२२६ नित्येतरधातूनां सप्त च तरूणां दश विकलेन्द्रियेषु षट् चैव । सुरनरकतिरश्वां चत्वारि चतुर्दश मनुष्ये शतसहस्राणि२२६
७ मूला०